
एमबीबीएस करने के दौरान मैं
खुद की भूमिका पर कन्फ्यूज्ड था. कहते हैं डॉक्टर भगवान का रूप होते हैं, पर आज
अधिकाँश डॉक्टरों के रूप शैतान से हो चुके हैं. मैं ईमानदारी से देश सेवा कर
चिकित्सीय धर्म निभाऊंगा, जैसा डॉक्टरों को हिप्पोक्रेटिक ओथ दिलाया जाता है या
फिर रूपये
कमाने की अंधी दौड़ में शामिल हो जाऊँगा, इस पर मैं उन दिनों डिसाइड नहीं
कर पा रहा था.

पर आज मैं प्रैक्टिस शुरू
करने के महज दस साल के अंदर करोड़पति हो चुका हूँ और मुझे आज वे सारे लोग बेवकूफ
नजर आते हैं जो ईमानदारी से जिंदगी गुजारते हैं और अभाव के कारण अपने बच्चों के
पढ़ाई में कमजोर होने की स्थिति में डोनेशन देकर मेडिकल-इंजीनियरिंग कॉलेज में
दाखिला तक नहीं दिलवा सकते.
प्रैक्टिस के शुरूआती दिनों
में मेरे पास पेशेंट नहीं आते थे और मैं क्लिनिक के झरोखे से सड़क की ओर निहारता था
कि कहीं से कोई पेशेंट आ जाय. पर धीरे-धीरे रोगियों ने मेरी क्लिनिक की ओर रूख करना
शुरू किया और मेरी आँखे भविष्य को सोचकर चमकने लगी.
पैथोलोजिस्ट ने दिखाया सबसे पहले कमाई का रास्ता: एक दिन मेरा कम्पाउन्डर एक व्यक्ति को लेकर मेरे पास आया जो शहर में पैथोलॉजी चलाता था. उसने मुझसे
कहा कि यदि आप अपने पेशेंट को टेस्ट के लिए मेरे लैब भेजेंगे तो मैं पैथोलोजी से
सम्बंधित टेस्ट जैसे टीसी-डीसी, हेमोग्लोबिन, एचाईवी, सीरम कृटनिंग, वीडाल आदि में आपको उसमें 70% कमीशन दूंगा. साथ ही रेडियोलॉजी से सम्बंधित
टेस्ट जैसे अल्ट्रासाउंड, एक्सरे, ईसीजी, टीएमटी, इको, एमआरआई आदि में 50-60% तक कमीशन दूंगा. मैं तैयार हो गया और अब पैथोलॉजी वाले के द्वारा मुझे
अलग से महीने में
हजारों रूपये की आमदनी होने लगी. पैथोलॉजी वाले की एक और सलाह मुझे
काफी पसंद आई और उसके कहे अनुसार मैनें जिस रोगी को टेस्ट की आवश्यकता नहीं भी थी,
उसे भी टेस्ट कराने की सलाह यह कहकर देने लगा कि बीमारी का सही इलाज करने के लिए
सही डायग्नोसिस जरूरी है. मैं पेशेंट की मजबूरी का फायदा उठाने लगा और मेरी आमदनी
बढ़ने लगी. रबिन्द्र का लैब शहर का खूब चलने वाला लैब था, और अब पैथोलॉजी वाला मेरा
प्रचार करने लगा कि डॉक्टर साहब बहुत ही अनुभवी हैं और बीमारी पर उनकी अद्भुत पकड़
है. रबिन्द्र के प्रचार से मेरा क्लिनिक भी अब पहले से ज्यादा चलने लगा.

शुरू में मुझे हराम की कमाई
पर आत्मग्लानि भी होती थी, पर आमदनी बढ़ने का सबसे पहला फायदा यह हुआ कि अब मेरे
बच्चे महंगे कपड़े पहनने लगे और धर्मपत्नी सप्ताह में कम से कम एक दिन मॉल में जाकर
खूब सामान खरीदने लगी और मुझे अब पत्नी और बच्चों का प्यार ज्यादा मिलने लगा.
(क्रमश:)
(अगले अंक में: दवा कंपनियों ने बनाया मुझे करोड़पति)
(डिस्क्लेमर: यह रिपोर्ट भले ही वास्तविकता के करीब हो पर पूरी तरह
काल्पनिक है और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है.)
(वि० सं०)
एक डॉक्टर की आत्मकथा (भाग-1): और मैं करोड़पति हो गया...
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 16, 2014
Rating:

S.R.Y
ReplyDelete