|वि० सं०|18 मई 2014|
शरद यादव हार चुके हैं. वर्तमान परिस्थिति में
मधेपुरा में शरद युग का अंत हो गया लगता है. बुलडोजर ने अवैध निर्माण गिरा दिया
है. ये हम अपनी नहीं नेताओं की भाषा कह रहे है. चुनाव प्रचार के दौरान मुद्दे
से भटक कर हताशा में शरद ने पप्पू यादव को ‘बुलडोजर’ की संज्ञा दी थी, भले ही नीतीश जी यह कहें कि उन्होंने
प्रचार में मुद्दे की बात की थी और बाकियों ने व्यक्तिगत आक्षेप लगाये थे.
शरद के
बुलडोजर वाले भाषण पर पप्पू यादव ने अपने फेसबुक पेज पर उन्हें कड़ा जवाब देते हुए
लिखा था कि बुलडोजर अवैध निर्माण को गिराने के लिए होता है और इस बार मधेपुरा में
शरद रूपी अवैध निर्माण गिर जाएगा. हुआ भी वही, शरद को मिली करारी हार.
एक नजर मधेपुरा में शरद यादव के
इतिहास पर: यहाँ हम मधेपुरा टाइम्स के पाठकों को फिर से याद दिलाते चलें कि शरद यादव ने
मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व वर्ष 1991, 1996, 1999 और 2009 में किया.
वर्ष 1998 के चुनाव में
लालू यादव (राजद) ने शरद यादव(जनता दल) को
हराया तो
फिर वर्ष 1999 में शरद यादव ने लालू यादव को हराया. वर्ष 2004 में लालू ने फिर शरद यादव को हराया,
लेकिन इस चुनाव में लालू यादव मधेपुरा और सारण दोनों क्षेत्र से निर्वाचित हुए और
उन्होंने मधेपुरा से इस्तीफ़ा दे दिया. इसके बाद वर्ष 2004 के उपचुनाव में पप्पू यादव (राजद) ने जदयू के आर.पी. यादव
को हराया. 2009
में शरद ने राजद के रविन्द्र चरण यादव को पराजित किया था, पर इस बार पप्पू यादव ने
उन्हें पटखनी दे दी.
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चुनाव
से पूर्व शरद के सामने पप्पू की चुनौती पर शरद ने कहा था कि ऐसा पूछकर क्यों हमें
छोटा करते हो, पर शरद यादव को अपनी जीत पर शंका थी, ऐसा उनके भाषणों से जाहिर होता
था. नीतीश कुमार ने भी अपनी पूरी ताकत झोंककर दस दिनों का मधेपुरा प्रवास किया था,
पर ढाक के तीन पात. आखिर इन पांच सालों में क्या हुआ ऐसा कि जनता ने शरद को भगाने
का निर्णय ले लिया.
आइये
जानते हैं क्या रही शरद के हार की वजह ?
1. क्षेत्र की उपेक्षा: शरद यादव अपने
को बड़े कद का नेता मानते हुए राष्ट्रीय राजनीति में व्यस्त रहना उचित समझा.
मधेपुरा में उठ रही समस्याओं पर प्रदर्शन होते रहे और शरद कान में तेल डालकर
दिल्ली में सोते रहे. वर्ष 2008 की बाढ़ की विभीषिका में राहत सामग्रियों के लूट का
आरोप भी सत्ताधारी दल से जुड़े मधेपुरा के कई जनप्रतिनिधियों पर लगे और ध्वस्त हुए
रेल परिचालन को पुनर्बहाल करवाने में मुरलीगंज और मधेपुरा के लोगों का विश्वास
सांसद पर से उठ गया. शरद यादव को चिढ़ाने के लिए मुरलीगंज के लोगों ने ‘शरद के क्षेत्र में बरद की सवारी’ का बैनर लगाकर रेल की पटरी पर
बैलगाड़ी तक चलाया था. स्लीपर फैक्ट्री, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज समेत कई
स्थायी समस्याओं में धीमी प्रगति लोगों के असंतोष का कारण बन गया.
2. आमलोगों की पहुँच से बाहर
थे शरद: शरद यादव मधेपुरा में आम लोगों की पहुँच से दूर रहे. उनका मधेपुरा कम आना और
आने के बाद भी आमलोगों को तरजीह न देना उनके खिलाफ गया. व्यापार संघ के इम्तियाज
अहमद ने तो यहाँ तक बयान दिया था कि बादशाह की तरह आते हैं और हिटलर की तरह चले
जाते हैं सांसद. उनके इर्दगिर्द रहने वाले लोग भी उन्हें क्षेत्र के बारे में गलत
फीडबैक देते रहे और इस बार दिल्ली के लिए नरेंद्र मोदी की जीत हो या मधेपुरा के
लिए पप्पू यादव की, ट्रेंड यह रहा कि जनता को शासक नहीं सेवक पसंद है.
3. गठबंधन का टूटना और भाजपा
प्रत्याशी का मैदान में उतरना: वर्ष 2009 की जीत में शरद को भाजपा और जदयू दोनों
के समर्थकों का वोट मिला था, क्योंकि भाजपा-जदयू का गठबंधन अपनी मजबूती पर था. इस
बार वोटर बंट चुके थे और भाजपा प्रत्याशी के द्वारा बटोरे गए वोटों की वजह से भी
शरद को हार का मुंह देखना पड़ा.
4. बाहरी भागो का नारा भी हावी
रहा: लगातार उपेक्षा के कारण अबतक मधेपुरा के लोगों के दिमाग में यह बात बैठ गई थी
कि मधेपुरा को बाहरी नेताओं ने उपनिवेश बनाकर छोड़ा है. यादव बाहुल्य क्षेत्र होने
की वजह से इस जाति के बाहरी नेता यहाँ सिर्फ अपनी सीट बचाने आते हैं, यहाँ के
विकास से उनका कोई खास लेनादेना नहीं है. शरद के खिलाफ इस मुद्दे पर भी मधेपुरा
में लोग आंदोलन पर उतारू थे.
5. पप्पू यादव का खड़ा होना: उपर्युक्त परिस्थितियां
तो शरद के खिलाफ थी ही, इसी जमीन पर पले बढ़े पप्पू यादव का राजद की तरफ से खड़ा
होना शरद के भुरभुरे किस्मत पर हथौड़े का अंतिम चोट साबित हुआ. उधर जहाँ भाजपा के
समर्थकों ने शरद यादव के खिलाफ वोट किया वहीँ ‘माय’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण तो मजबूत रहा ही, पप्पू यादव के
धुआंधार क्षेत्र दौरे से अन्य जातियों के लोगों का भी भरोसा पप्पू पर जम गया और
क्षेत्र के विकास के मुद्दे पर पप्पू सबसे बेहतर प्रत्याशी माने गए.
और इस
तरह मधेपुरा में एक युग का अंत और दूसरे युग का प्रारंभ हुआ.
शरद-युग के अंत की कथा, क्या बुलडोजर ने अवैध निर्माण गिरा दिया है?: मधेपुरा चुनाव डायरी (97)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 18, 2014
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