आज मूर्ख दिवस है। इस प्रकार के दिवस हमारे भारतवर्ष की परंपराओं में
कभी नहीं रहे मगर चूंकि हम बरसों तक विदेशियों के
गुलाम रहे हैं इसलिए हमारे खून में कहीं न कहीं दासत्व के तंतु दौड़ते रहते हैं और यही कारण है कि हम अपनी परंपरागत भारतीय
जीवन पद्धति और विचारों को भले ही आत्मसात न कर
पाएं हों मगर पाश्चात्यों की हर बात के अंधानुकरण में जीवन खपा दिया करते हैं।
अपने
लिए अनुकूल, हितकर और सार्वजनीन कल्याण की कोई सी बात
हो, हम सहजता से स्वीकार कभी नहीं करते। लेकिन विदेशियों की कही हुई हर बात हमारे लिए ब्रह्मवाक्य
बनकर अपना असर दिखाती है। जिस भयानक आत्महीनता और
नैराश्य के दौर से हम गुजर रहे हैं वहाँ पाश्चात्यों का सब कुछ अपना कर भी हम वैसे के वैसे ही हैं।
हमारी
जीवनचर्या से लेकर सार्वजनीन व्यवहार तक में हम
पिछलग्गुओं की तरह बर्ताव करने के इतने आदी हो गए हैं हमारे आगे नकलची प्रजातियां भी पानी भरने लगें। स्थिति कमाबेश सभी
स्थानों पर एक जैसी ही है। अपना कोई कुछ भी कह दे, कर ले और दिखा दे, हम कतई बर्दाश्त नहीं कर पाते,
मगर किसी विदेशी ने कह दिया
तो समझ लो जीवन विज्ञान का महामंत्र ही पा लिया हो, ऎसी हमने सोच
विकसित कर रखी है।
बात
भारतीय जीवनपद्धति और परंपराओं की हो, खान-पान की हो, लोक व्यवहार से लेकर समाज सेवा और
राष्ट्रोत्थान की हो या फिर कोई सी अच्छी आदत। हमने एक-एक
कर सबको भुला दिया और उनकी जगह उन्हें अपना लिया जो पराये लोगों को पसंद रहा है। हमारी अंधभक्ति का इससे बड़ा कोई नायाब उदाहरण और क्या होगा जिसमें हमने उन विषयों और
वस्तुओं को भी दिल से लगा रखा है जिन्हें दुनिया अब नकार
रही है। देशाभिमान से लेकर स्वदेशी चिंतन तक हमने
सब छोड़ दिया है और उस मुकाम पर आ खड़े हुए हैं जहाँ
हर क्षण हमें विदेशियों के निर्देशन और विदेशी वस्तुओं की जरूरत
पड़ती ही है।
हममें
से खूब सारे लोग ऎसे हैं जिन्हें जमाना मूर्ख
समझता है और हम जमाने को। ज्ञान की रोशनी, दुनिया को जानने समझने और सत्य तथा यथार्थ का भान होते हुए भी
हम लोग पाश्चात्यों का अंधाुनकरण कर रहे हैं। हमारा
परिवेश, खान-पान, लोक व्यवहार, जमीन, बीज, फसलें, फल-फूल आदि सब
कुछ प्रदूषित होता जा रहा है
और हम मूर्खता को अपनाते हुए उन तत्वों को अंगीकार करने में जुटे हुए हैं जिन्हें अपनाने का काम मूर्ख ही कर सकता है।
मूर्खों
की ढेर सारी किस्मे अपने यहाँ हैं। कई सारे ऎसे
हैं जो सब कुछ जानते बूझते हुए भी मूर्खता ओढ़े हुए अपने हाल में मस्त हैं। जमाना भी इन्हें मूर्ख मानकर इनसे कन्नी
काटता रहता है। ये लोग भी यही तो चाहते हैं। दूसरी किस्म में हम जैसे लोग आते
हैं जो सब कुछ जानते-समझते हुए भी किसी न किसी स्वार्थ में मूर्ख बने हुए वो सब काम कर रहे हैं जो हमें मूर्ख बनाने
वाले करवा रहे हैं। किसी को रुपयों-पैसों, जमीन-जायदाद का
स्वार्थ है, किसी को देह का आकर्षण है, तो कोई पद और प्रतिष्ठा के जुगाड़ में मोहांध हो
रहा है।
कुछेक
फीसदी ही ऎसे हैं जो मूर्ख बनकर जी रहे हैं और उन
पर गधों की तरह बोझ लादा हुआ है।
हर कोई किसी न किसी प्रकार से
मूर्खता का दामन थामे
हुए है। जो मूर्खता ओढ़े हुए
हैं वे गरमी, सरदी और बरसात .... हर मौसम में मस्त रहते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि उनके बाद असली
मूर्खों का कुनबा हर कहीं होता ही है।
मूर्ख
बनने और बनाने वालों के रहते हुए मूर्खता को
वैश्विक प्रतिष्ठा प्राप्त न हो,
यह कतई संभव नहीं है। मूर्खों को दोष न दें, ये मूर्ख न होते तो आज जमाना या तो थम जाता या हम सारे के सारे आज के दिन मंगल ग्रह पर होते, चाँद पर अपनी कॉलोनिया में मूवी देखते हुए नज़र आते।
एक
अप्रैल का दिन भले ही मूर्खों को समर्पित हो,मूर्खों के नाम हो, लेकिन यह दिन अपने आप में बहुत बड़ा संदेश देता है। यह दिन हम सभी से या तो मूर्खता
छोड़ने या फिर तहे दिल से सार्वजनीन तौर पर अपने आपको
मूर्ख के रूप में स्वीकारने का पैगाम देता है। यह हम पर है कि हम क्या कर पाते हैं।
मूर्खता
अपने आप में वह शब्द है जो हर किसी इंसान के
पल्ले कभी न कभी पड़ता ही है। शायद ही कोई बंदा ऎसा होगा जिसे मूर्ख का संबोधन कभी न मिला हो। कोई कम है, कोई ज्यादा, कोई खुद बन रहा है, कोई दूसरों को बना रहा है।
आज
के पावन दिवस पर सभी किस्मों के मूर्खों के प्रति
आदर-सम्मान देने को जी चाहता है क्योंकि मूर्खता न होगी वहाँ न जीवंतता हो सकती है, न रोचकता और न ही
और कोई परिवर्तन। मूर्ख दिवस पर सभी मूर्खों के
प्रति कोटि-कोटि नमन .... उनकी मौलिक और आयातित प्रतिभाओं को वंदन....। अपनी बिरादरी में आने वाले सभी प्रकार के मूर्खों को
मूर्ख दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं....।
डॉ. दीपक आचार्य (9413306077)
सच्चे मन से स्वीकारें हम सब मूर्ख हैं
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 01, 2014
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