पोथी
पढ़ि- पढ़ि जग मुआ,
पंडित
भया न कोय |
ढ़ाई आखर
प्रेम का
पढै सो
पंडित होय ||
अनपढ़ बाबा का यह गूढ़ और शाश्वत शबद कितना लोमहर्षक
है ! मटुकनाथी सम्प्रदाय वाले संत वेलेंटाइन के आधुनिक उत्तराधिकारियों के सिवा इस
आर्षवाक्य का मर्म भला कौन समझ सकता है ? वैसे, स्वनामधन्य मटुकनाथ जी स्वयं प्रेम
रसज्ञ साहित्य मर्मज्ञ हैं ही.
संत
वेलेंटाइन और उसकी शिष्या लूसिया के बीच पक रही खिचड़ी भले ही सेंटीमेंटल-सात्विक
प्रेमाकर्षण का प्रतिफल हो, मगर मटुक बिहारी और जूलिया के बीच ऑरिजिनल और फिजिकल
प्रेम-पौधा आज भी लहलहा रहा है.
कभी
अक्खर बाबा प्रेम रहस्य का पोस्टमार्टम कर उपदेशार्थ जोखिम उठाया है-
“प्रेम न खेती उपजै, प्रेम न हाट
बिकाय |
राजा-प्रजा
जेहि रूचै, सिर दे सो ले जाय ||”
लेकिन
आज प्रेम का फॉर्म हाउस व्यापक पैमाने पर उपजाऊ है और धड़ाधड़ बिकने
को तैयार भी है.
कभी कभार ऊं नम: स्वति जोर जबरदस्ती भी हो जाया करती है. थोक भाव में गैंग रेपों
की खबर की नोटिश लेकर देखिए! साधु-संतों का सेक्स स्कैंडल हो या फिर नेताओं की
रंगरेलियां.


कभी कृष्ण-प्रेम
में पगी भक्तिन मीरा अपने कुल-मर्यादा का कूल-किनारा तोड़कर साधू संतो के बीच
बिंदास थिरकती थी. उसकी अत्याधुनिक चेलियां मोबाइल-प्रेम में भींग कर अहर्निश
लुटवा
रही है. आशिक और माशूका का प्रेम निमंत्रण अपना नियंत्रण खो चुका है.

सच,
प्रेमिका के प्रति प्यार का दरिया उफनकर कूल-किनारा का अतिक्रमण करता रहता है,
लेकिन ज्योंही प्रेमिका पत्नीरूपा हो जाती है, प्रेम का सोता सूखने लगता है. हाँ,
फूल फिर शूल बन जाता है.
सपनों
का सौदागर सत्ताप्रेमी राजनेताओं की भांति प्रेम-व्यापारियों ने नैतिकता को सूली
पर टांग दी है. पाश्चात्य अपसंस्कृति की बदबू आज हमारे भावी कर्णधारों की नस-नस
में रच-बस गई है.
बकौल,
हारे-थके-चुके समाजशास्त्री-
“प्रेम दिल का मामला है.”
आज मेरा दिल भी चहककर फुदक रहा है-
“ दिल की बात मत कर यार, मामला दिल दा नाजुक होता है,
दिल
दल-बदलू नेता है, जो भा जाता उसी पर आ जाता है.”
पी० बिहारी ‘बेधड़क’
कटाक्ष
कुटीर, महाराज गंज,
मधेपुरा.
ढ़ाई आखर प्रेम का....
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 14, 2014
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