|नि.प्र.|13 जुलाई 2013|
आम आदमी के जान की कीमत कुछ भी नहीं है, ऐसा कहना हमेशा
मुनासिब नहीं. आम आदमी के जान की कीमत की अलग-अलग कुछ दरें हैं. भले ही आम आदमी के
मरने का कोई निश्चित ठिकाना नहीं है. खास लोग अस्पताल या घरों में अंतिम साँसे
लेते हैं पर आम लोग खुले में तड़प-तड़प कर दम तोड़ देते हैं. सड़क पर इक्का-दुक्का मरे
लोग नेताओं और अधिकारियों की कृपा नहीं पाते हैं जबकि आपदा में सामूहिक रूप से मरे
लोगों की कुछ कीमतें नेता और अधिकारी लगा देते हैं और वो भी यदि चुनाव नजदीक हो तो
निश्चित है.
आलमनगर
के खावन पंडितजी बासा में नाव पलटने से मरे दस लोगों को मुआवजा देकर जिला प्रशासन
और नेताओं ने कर्तव्य निभा लिया है, भले ही समस्या जस की तस है और इस तरह की अगली
मौतें कैसे रूकती हैं, इस पर शायद ही कुछ हो पाया है.
ज्यादातर
आपदा से मरे व्यक्ति के परिजनों को मुआवजे में 1,51,000/- रू० मिलते हैं जिसमें
1500/- रूपये लाश को जलाने के लिए कबीर अंत्येष्ठी योजना के तहत और 1.5 लाख आपदा
कोष से. पर चुनाव निकट हैं. इस बार पंडितजी बासा में मारे गए एक व्यक्ति के जान की
कीमत लगा दी गई 2 लाख 6 हजार पांच सौ. 1,51,000/- के अतिरिक्त मौके पर 36 घंटे बाद
पहुंचे बिहार सरकार के मंत्री और इस क्षेत्र के विधायक नरेंद्र नारायण यादव ने 50
हजार रूपये मुख्यमंत्री राहत कोष से देने की घोषणा और 5 हजार प्रति व्यक्ति पार्टी
की ओर से नगद देकर मृतकों के परिजनों के मुंह बंद कराने की कोशिश की है.
यदि
गहराई से देखा जाय तो इस बार हुए दस मौतें आपदा नहीं हैं, इसे लापरवाही में हुई
मौत कहा जा सकता है. यदि ग्रामीणों की पुल बनाने की 15 साल पुरानी मांगों पर ध्यान
दिया जाता तो शायद ऐसा हादसा होने से बच जाता. आलमनगर के इलाके के लोगों की शायद
यही नियति है.
गरीब की मौत पर मुआवजा देकर कराए जाते हैं मुंह बंद
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 13, 2013
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