|शंकर सुमन| 22 मई 2013|
मुरलीगंज थाना के जोरगामा गांव मे खूनी जंग की आशंका कोई नयी बात नही. यहाँ पूर्व मे भी जमींदारी मामले में हुए खूनी जंग में कई दिगज्ज अपनी जान गवां बैठे हैं.
सूत्रों के मुताबिक़ इस खूनी खेल में कई छुपे रूस्तम पर्दे के पिछे रहकर जंग को हमेशा उकसाने काम करते आ रहे हैं. मामले को नियंत्रित करने में पुलिस प़शासन को गहराई मे जाना होगा तभी शांत हो सकती है जोरगामा में खूनी जंग की आशंकाएँ. पुलिस के आलाधिकारी अगर मानवीय जिम्मेदारी के साथ देखे तो खुद इस खेल मे पुलिस की भी शुरुआती दौर से अहम भूमिका देखी जा सकती है. यह सिर्फ बिहार का जोरगामा ही नहीं झारखंड के कई गाँव में भी नक्सलवाद इसी तर्ज पर पनपा है. अब जमींदारी तो रही नहीं लेकिन थोड़ी-बहुत जमींदारी पर दिग्गजों के इशारे पर सुशासन के महादलितों का सहारा लिया जा रहा है. इससे पहले पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ किसी खास राजनीतिक दल ने देश में कई बार इस तरह के खेल में अपनी भूमिका निभाई है.
सूत्रों के मुताबिक़ इस खूनी खेल में कई छुपे रूस्तम पर्दे के पिछे रहकर जंग को हमेशा उकसाने काम करते आ रहे हैं. मामले को नियंत्रित करने में पुलिस प़शासन को गहराई मे जाना होगा तभी शांत हो सकती है जोरगामा में खूनी जंग की आशंकाएँ. पुलिस के आलाधिकारी अगर मानवीय जिम्मेदारी के साथ देखे तो खुद इस खेल मे पुलिस की भी शुरुआती दौर से अहम भूमिका देखी जा सकती है. यह सिर्फ बिहार का जोरगामा ही नहीं झारखंड के कई गाँव में भी नक्सलवाद इसी तर्ज पर पनपा है. अब जमींदारी तो रही नहीं लेकिन थोड़ी-बहुत जमींदारी पर दिग्गजों के इशारे पर सुशासन के महादलितों का सहारा लिया जा रहा है. इससे पहले पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ किसी खास राजनीतिक दल ने देश में कई बार इस तरह के खेल में अपनी भूमिका निभाई है.
जोरगामा
का पूरा मामला अभी भी नियंत्रण में आ सकता है यदि प्रशासन के लोग ईमानदारी से हरेक
पहलू को परख कर कार्यवाही कर सके.
जोरगामा में खूनी जंग की आशंका: कई छुपे रूस्तम है परदे के पीछे
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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May 22, 2013
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