मधेपुरा में पत्रकारिता के इतिहास में जिन कुछ
गिने-चुने लोगों ने अपनी सशक्त लेखनी से अलग पहचान बनाई थी उनमें एक अतिमहत्वपूर्ण
नाम स्व० बिमल कुमार सर्राफ का है. आज जहाँ जिले की पत्रकारिता का स्तर चमचागिरी
और नाजायज पैसे कमाने के चक्कर में गिरता जा रहा है वहां बिमल कुमार सर्राफ जैसे
लोग इस क्षेत्र में अपनी निर्भीकता के कारण मिसाल बने थे. स्व० बिमल कुमार सर्राफ
को जानने वाले शख्स अभी भी उन्हें याद कर उनसे जुड़े कुछ सुखद संस्मरण सुना जाते हैं.
कोशी और बिहार के बहुत से लोग उन्हें एक पत्रकार ही नहीं उत्कृष्ट समाजसेवी के रूप
में भी जानते हैं.
मधेपुरा
में ही 25 सितम्बर 1949 को जन्मे बिमल सर्राफ का सिर्फ 50 साल की उम्र में ही लीवर
कैंसर के कारण 27 अगस्त 1999 को इस दुनियां को अलविदा कह देना बहुत से लोगों को
दर्द दे गया क्योंकि वे जानते थे कि विकल्प ढूँढना मुश्किल है.
वर्ष 1976 से 1992 तक पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय बी.एससी. की डिग्री प्राप्त किये स्व० सर्राफ शुरू से ही ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ से जुड़े थे और इस इलाके में उस अवधि में इस अखबार के सर्कुलेशन में उनकी महती भूमिका थी. पटना संस्करण में उनकी लेखनी से कई बार उन्हें कुछ लोगों का कोपभाजन भी बनना पड़ा था. बेबाक लिखना और बोलना उनकी आदतों में शुमार था. पत्रकारिता के गुर के बारे में उनकी दृष्टि पैनी थी और वर्तमान समय में भी उनसे दिशानिर्देश पाए बहुत से पत्रकार इस क्षेत्र में बेहतर काम कर रहे हैं. अधिकारियों के प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके स्पष्ट और बेबाक बोलने को लोग आज भी याद करते हैं.
वर्ष 1976 से 1992 तक पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय बी.एससी. की डिग्री प्राप्त किये स्व० सर्राफ शुरू से ही ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ से जुड़े थे और इस इलाके में उस अवधि में इस अखबार के सर्कुलेशन में उनकी महती भूमिका थी. पटना संस्करण में उनकी लेखनी से कई बार उन्हें कुछ लोगों का कोपभाजन भी बनना पड़ा था. बेबाक लिखना और बोलना उनकी आदतों में शुमार था. पत्रकारिता के गुर के बारे में उनकी दृष्टि पैनी थी और वर्तमान समय में भी उनसे दिशानिर्देश पाए बहुत से पत्रकार इस क्षेत्र में बेहतर काम कर रहे हैं. अधिकारियों के प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके स्पष्ट और बेबाक बोलने को लोग आज भी याद करते हैं.
साहित्य
और पठन-पाठन में गहरे लगाव ने ही शायद उन्हें समाजसेवा की तरफ मोड़ा. जरूरतमंदों की
सेवा और गरीब की बेटियों की शादी में वे परिवार से छुपा कर भी आर्थिक मदद करते थे.
जिले भर में सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना और उसे आगे बढ़ाने में भी उनका
ख़ासा योगदान रहा था. जिला मुख्यालय के बड़ी दुर्गा मंदिर के निर्माण में उनका बड़ा
योगदान तो रहा ही था साथ ही लोगों के आपसी विवादों का समाधान भी वे पंचायत के माध्यम से करा दिया
करते थे. समाजसेवा और परोपकारिता के गुण उनकी पत्नी स्व० सुलोचना देवी में भी था
और वे भी खासकर महिलाओं में काफी लोकप्रिय थी. वर्तमान में उनके पुत्र चार्टर
एकाउंटेंट मनीष सर्राफ छोड़े गए सपने को नई दिशा प्रदान कर रहे हैं.
स्मृति शेष बिमल कुमार सर्राफ के निधन के बाद से पत्रकारिता और समाजसेवा के क्षेत्र में एक
बड़ी रिक्तता आई है जिसे भर पाना काफी मुश्किल है.
(मधेपुरा टाइम्स ब्यूरो)
स्मृति शेष: निर्भीक पत्रकार ही नहीं उम्दा समाजसेवी भी थे बिमल सर्राफ
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 30, 2013
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