सत्य की राह कठिन जरूर है पर है असली आनंद देने वाली

सत्य जीवन का सर्वोपरि कारक है जिसका आश्रय ग्रहण कर लिए जाने पर धर्म और सत्य हमारे जीवन के लिए संरक्षक और मार्गदर्शक की भूमिका में आ जाते हैं और पूरी जिन्दगी इसका सकारात्मक प्रभाव हमारे प्रत्येक कर्म पर तो पड़ता ही है, हमारा समूचा आभामण्डल ही प्रभावोत्पादक और शुभ्र परिवेश का निर्माण कर देता है।
धर्म और सत्य ऐसे महानतम कारक हैं जो अवलम्बन करने वाले की हर प्रकार से रक्षा करते हैं और उन्नति के लिए ऊर्जा का संचरण करते रहते हैं। इतने प्रभावी होने के बावजूद इसका आश्रय लोग या तो ले नहीं पाते अथवा अपनी क्षुद्र कामनाओं के वशीभूत होकर इनसे दूरी ही बनाए रखते हैं।
जीवन में एक किनारे पर धर्म, सत्य और आनंद रहते हैं जो सत्यं शिवं सुन्दरं का वरदान प्रदान करते हैं। दूसरी ओर अधर्म, असत्य और पाप का डेरा होता है जो क्षणिक आत्मतुष्टि प्रदान करता है और यह कभी शाश्वत नहीं रह पाती है। इसके साथ ही यह अलक्ष्मी, भय और उद्विग्नता साथ लेकर आती है।
सत्य की जड़ें बहुत गहरी होती हैं और उन्हें जमने में समय लगता है और इस कारण इसका फलन भी खूब लंबे समय बाद होता है जबकि असत्य की जड़ें छिछली होती हैं और इस कारण यह पानी हो या जमीन पर, हर कहीं जल्दी ही फलित लगती हैं और हर आदमी चाहता है कि कम से कम समय में अधिक से अधिक फायदा मिल जाए। इसलिए आम लोगों का रुझान दूसरे मार्ग की ओर होता है।
असत्य हमेशा कभी अकेला नहीं आता, और न ही अकेला रहता है। असत्य की परछायी दूर-दूर तक पसरी हुई रहती है। एक बार असत्य का आश्रय पा लेने के बाद यह फफूंद या संक्रमण की तरह फैलने लगता है।
असत्य हमेशा पूरी की पूरी श्रृंखला लेकर चलता है। और यही कारण है कि किसी भी मामले में एक झूठ को छिपाने के लिए एक के बाद एक झूठों का सहारा लेना पड़ता है और फिर झूठ बोलने वाले लोगों के जीवन में झूठ की कड़ी से कड़ी जुड़ती चली जाती है तथा आदमी को लगता है जैसे वह असत्य की कई-कई जंजीरों के बेरिकेडिंग में मकड़जाल की तरह फंसता ही चला जा रहा है। एक बार झूठ के जाल में शरण ले लिये जाने पर झूठ के तानों-बानों में उलझता हुआ आदमी मकड़ी ही होकर रह जाता है।
जो लोग झूठ का सहारा लेते हैं उन्हें अपने झूठ को छिपाने के लिए हमेशा एक पर एक झूठ बोलने को विवश होना पड़ता है और ऐसे में आदमी खुद झूठ का पुलिंदा होकर रह जाता है। जिसकी वाणी में झूठ प्रवेश कर जाता है उसके पूरे शरीर और जीवन में झूठ का समावेश इस प्रकार हो जाता है कि व्यक्ति को कभी यह अहसास नहीं होता कि वह झूठ बोल रहा है क्योंकि सच और झूठ में फर्क करने और परिणाम के बारे में चिंतन करने वाली उसकी विवेक बुद्धि अंधकार की छाया से ग्रसित हो जाती है और ऐसे में उसे लगता है कि झूठ का संरक्षण ही उसे बचा सकता है।
जो लोग बात-बात पर झूठ बोलते हैं वे पुरुषार्थहीन, निर्वीर्य, कायर, नपुसंक और भयग्रस्त होने के साथ ही उनके जीवन में हमेशा अपराधबोध और आत्महीनता की भावना बनी रहती है। यही कारण है कि ऐसे लोगों को अपने अस्तित्व की रक्षा करने अथवा साबित करने के लिए झूठी बातों का सहारा लेना पड़ता है।

---डॉ. दीपक आचार्य (9413306077)
सत्य की राह कठिन जरूर है पर है असली आनंद देने वाली सत्य की राह कठिन जरूर है पर है असली आनंद देने वाली Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 09, 2012 Rating: 5

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