कभी धारदार कलम से प्रशासन की चूलें हिला देने का
माद्दा रखने वाले मधेपुरा के आदर्श कॉलेज घैलाढ़ के लेक्चरर शम्भू शरण भारतीय इन
दिनों औषधीय पौधों पर अपने अनुसंधान को निखार रहे हैं. ये भले ही हिन्दी में एम.ए.
हों पर पौधों के मामलों में इनकी जानकारी किसी बॉटनी के लेक्चरर सी है.
कहते
हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. बेटी श्वेता जब बीमार पड़ी तो लाख इलाज
कराया पर जब सुधार नहीं हुआ तो मुम्बई की रिपोर्ट से पता चला कि श्वेता आंत की
कैंसर का शिकार हो चुकी है. सीमित आमदनी वाले शम्भू शरण भारतीय के लिए बेटी को
बचाना अब असंभव जैसा प्रतीत हुआ तो पौधों और जड़ी-बूटी के अध्ययन में श्री भारतीय
ने महारत
हासिल कर ली. याद करते श्री भारतीय सिहर उठते है उस रात की बात जब श्वेता
का बुखार 104 डिग्री से नीचे नहीं आ रहा था और वो दर्द से छटपटा रही थी. मधेपुरा
के एक नामी चिकित्सक ने दवाओं का असर न होता देख चिंतित होकर पूछा कि अब क्या
करेंगे. श्री भारतीय ने कहा कि मेरा अध्ययन कहता है इस पौधे के प्रयोग से पन्द्रह मिनट में बुखार कम हो जाना चाहिए. और हुआ भी वही. कैंसर की मरीज बेटी श्वेता ढाई
साल से स्वस्थ है.

इलाके
के कई रोगी आज शम्भू शरण भारतीय के इलाज से ठीक हो रहे हैं. मसलन एक महिला जिसे
चिकित्सकों ने कुछ ही घंटों का मेहमान बताया था आज इनके इलाज से जिन्दा है. अपने
आँगन और घर के आसपास ही इन्होनें 105 तरह के औषधीय पौधों को लगा रखा है जिनकी
बदौलत ब्लड प्रेशर, जौंडिस, डिप्रेशन, डायबिटीज, हार्ट अटैक, माइग्रेन से लेकर
कैंसर तक
के रोगों में इनकी इन पौधों से बनाई दवाईयां कारगर साबित हो रही है.बताते
हैं कि कई पौधों की पहचान करने के लिए पूसा तक के वैज्ञानिक इनकी मदद की आवश्यकता
महसूस करते हैं.

मधेपुरा
के गोशाला के कैम्पस में एक छोटे से घर में रह रहे शम्भू शरण भारतीय के घर आज
दूर-दूर से असाध्य रोगों के मरीज इलाज के लिए पहुँच रहे हैं. इनमे से अधिकाँश वैसे
मरीज हैं जो विभिन्न चिकित्सकों से अपना इलाज करा कर थक चुके हैं और यहाँ राहत
महसूस कर रहे हैं.
शम्भू शरण भारतीय से इस नंबर पर संपर्क किया जा सकता है: 7677350935.
मधेपुरा टाइम्स
ने उनसे कई औषधीय पौधों के बारे में जानकारी ली जो इस वीडियो में है. वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें.
कई असाध्य रोगों का इलाज है शंभू शरण भारतीय के पास
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 30, 2012
Rating:

एक सलाम उन्हेँ जिन्होँने बिना कोई औषधीय गुण वाले अँग्रेजी दवाइयोँ का बहिष्कार कर पेड़ पौधोँ पर विश्वास किया।
ReplyDeleteवास्तव मेँ अंग्रेजी दवाइयोँ मेँ कुछ है हीँ नहीँ।
I salute to the personality for this acheivement in MADHEPURA.
ReplyDeleteYou are great,,,,,,,,,
(y)
I salute to the personality for this acheivement in MADHEPURA.
ReplyDeleteYou are great............
(y)
यह एक बहुमूल्य प्रयाष है रोग पर विजय पाने की, मधेपुराटाइम्स को ऐैसी खबर के लिये बहुत-बहुत धन्यबाद ...
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