पत्रकार बोले तो दलाल ?
पत्रकारिता जगत बदहाल है और पत्रकारों की साख दाव पर
लगी हुई है. बिडम्बना यह है कि लोकतंत्र के चौकीदार की छवि रखने वाले शख्सियतों की
पहचान अब दलाल के रूप में स्थापित हो रही है. नीरा राडिया टेप प्रकरण के बाद यह
स्याह सच उजागर हो चुका है कि ऊँचे पदों
पर आसीन हो या कस्बाई पत्रकार, दलाल के ही रूप में जाने जाते हैं. हालांकि इसके
अपवाद आज भी मौजूद हैं.
दरअसल
पत्रकारों की भी अपनी मजबूरियां हैं. चंद लोगों को छोड़ दें तो शेष लोगों की माली
हालत काफी जर्जर है. मीडिया घरानों का शोषण दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है. कल तक जो
मीडियाकर्मी ख़बरों के सूत्र तलाशते थे आज वे राजस्व के सूत्र तलाशने में जुटे हुए
हैं. विज्ञापन के नाम पर कस्बाई पत्रकारों को राजस्व उगाही के लिए जबरन बाध्य किया
जाता है. यहीं से दलाली की संस्कृति विकसित होती है.
जर्जर
आर्थिक स्थिति के बहाने दलाली की प्रवृति को सामजिक स्वीकृति प्रदान करना हमारा
मकसद नहीं है. जरा इन चेहरों को पहचानिये कि कौन लोग होते हैं पत्रकार ? हमने अपने
पिछले लेख ‘अल्पज्ञानी
और दिग्भ्रमितों ने किया बेडा गर्क’ में लिखा था कि जब सरकारी नौकरी की उम्र समाप्त हो गयी तो
खुद को बुद्धिजीवी दिखाने के लिए और अपनी नाकामी को छिपाने के लिए कलम के सिपाही
बन गए.खुद के साथ तो न्याय नहीं कर सके लेकिन लोगों को न्याय दिलाने का ठेका जरूर
ले लेते हैं. आर्थिक जरूरत है तो दलाली करनी ही होगी क्योंकि पत्रकारिता से एक
मजदूर के बराबर भी आमदनी नहीं हो पाती है.
पत्रकार
बनना सबसे सुलभ और आसान उपाय है. पत्रकार बनते ही दलाली का स्वत: लाइसेंस हासिल हो
जाता है. दलाली का एक चैनल बना हुआ है. राजधानी में पत्रकार हैं तो
मुख्यमंत्री से
लेकर डीजीपी तक के कृपापात्र बनने की होड़ मची रहती है और जिलास्तरीय पत्रकार हैं
तो डीएम और एसपी की चमचई में भविष्य सुरक्षित दिखाई देता है. ‘महाजनो: येन गत: स पंथा:’ की तर्ज पर प्रखंड स्तरीय
पत्रकार भी थाना और ब्लॉक की दलाली कर अपनी जिंदगी की गाड़ी खींचते हैं. इनका शोषण
तो जिला स्तर पर स्थित ब्यूरो कार्यालय से भी जम कर होता है. होली, दशहरा और
दीपावली जैसे अवसर पर ब्यूरो चीफ को नजराना देना इनकी मजबूरी होती है.

हम
व्यक्तिगत तौर पर कई ऐसे पत्रकारों को जानते हैं जिन्होंने पत्रकारिता की आड़ में
अच्छी खासी संपत्ति अर्जित कर रखी है. यह मेहनत के बदौलत नहीं दलाली के बल पर संभव
हुआ है. स्याह सच यह है कि पत्रकारों के सामने में तो तारीफों के पुल बंधे जाते
हैं, लेकिन पीठ पीछे मिलती है केवल भद्दी गालियाँ. यह स्थिति कल तक सड़क छाप नेताओं
की थी, जिसकी जगह अब पत्रकारों ने ले रखी है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि
पत्रकारिता समाज के लिए नहीं व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति का साधन बन कर रह
गया है.
(पत्रकारिता का गिरता स्तर: जिम्मेवार कौन ? भाग: 1, पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.)
(मधेपुरा टाइम्स ब्यूरो)
(पत्रकारिता का गिरता स्तर: जिम्मेवार कौन ? भाग: 1, पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.)
(मधेपुरा टाइम्स ब्यूरो)
पत्रकारिता का गिरता स्तर: जिम्मेवार कौन? (भाग:2)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 01, 2012
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पत्रकार बिरादरी का होते हुए भी दलाल कह रहे हैं पत्रकार को? आपलोग भले ही अभी साफ़-सुथरे लगते हैं,पर आने वाले समय में कितना बचा सकते हैं अपने को,हमें भी देखना है.
ReplyDeleteMadhepura ka ek nami patrkar pahle thana ki dalali karta tha aur ab dm ki dalati me din rat ek kiye hai.
ReplyDeleteमै एक इसे पत्रकार को जनता हूँ ,जिसने दलाली से बहुत ज्यदा सम्पति अर्जित की है !वैसे सुशासन बाबु ऐसे पत्रकार के बहुत कायल है !
ReplyDeleteदुसरे के दमन मै दाग सब दिखाते है लेकिन अपने दमन मै दाग को उजागर करने की हिम्मत सपूत ही कर सकते है अपने बिरादरी के खिलाफ लिखने के लिए मधेपुरा टाइम्स को कोटि-कोटि धन्यवाद !
ReplyDeleteयदि मर्यादा का ख्याल नहीं होता तो बहुत ऐसी जानकारी है जो समाज मै जाने के बाद पत्रकार बिरादरी से लोगो को घृणा हो जाएगी मसलन एक पत्रकार ने पैसा और झूठी प्रतिष्ठा के लिए अपनी बहन तक का इस्तेमाल किया ताकि अफसर उसके इशारे पर नाच सके ! और एसा हुआ भी !
ReplyDeleteमधेपुरा टाइम्स के माध्यम से ये बताना चाहूँगा आम लोगो मै पत्रकारों के प्रति इतना आक्रोश है की समाज मै हिंसात्मक प्रवृति मिडिया के प्रति विकसित होने लगी है !
ReplyDeleteतभी तो हाल ही मै हिदुस्तान दैनिक समाचार पत्र की प्रति सैकड़ो लोगो ने जलायी!पीत- पत्रकारिता करने वालो को सबक लेनी चाहिए !अन्यथा विरोध करने के तरीके उग्रतम रूप धारण कर लेंगे !
ReplyDeleteआपका आलेख शत-प्रतिशत सही है !धन्य है वो माँ-बाप जिसने आप जैसे इन्सान को जन्म दिया !
ReplyDeleteअधिकार खोकर बैठ जाना यह महा-दुष्कर्म है !न्यायार्थ अपने बंधू को भी दंड देना धर्म है!आपने अपने ही बिरादरी के खिलाफ आवाज उठाकर उपरोक्त कहावत को चरितार्थ किया है !आपको कोटि-कोटि नमन है!नेहा अग्रवाल
ReplyDeleteDalal patrkaraom ka sahar hai madhepura. sab akhbaar me ek se jyada aise dalal hain jinme competition karaya ja sakta hai 'Best Dalal Patrkar' chunne ke liye.
ReplyDeleteमै मधेपुरा टाइम्स का नियमित पाठक हूँ ,शायद इतनी ज्यादा प्रतिक्रिया किसी भी आलेख के बाद नहीं आयी होगी !इसका सीधा मतलब है की जनमानस मै पित-पत्रकारिता के प्रति बहुत ज्यादा गुस्सा है !
ReplyDeleteIs tarah likhne se kuchh nahi hone wala hai. ye dalal hi paida liye hain aur dalal hi mar jayenge.Adat bahut kharab chij hoti hai.
ReplyDeletesab log bas bole ja rahe hain..kuch udahran bhi batayein
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