मधुमास के दोहे///सुबोध कुमार सुधाकर

फागुन के इस मास में द्रुमदल का श्रृंगार |
कुंद-कली के प्यार में, भौंरों का गुंजार ||1||
लदी आम की डालियाँ,छलकत मधुमय जाम|
गंध पवन आगोश में, लहकत लता ललाम||2||
गेहूं विहँसत खेत में, लाल गुलाबी गाल|
चुह-चुह चटकी लालिमा, टेसू भी है लाल||3||
आयी महुआ कुञ्ज में, चहल-पहल की रात|
झुकी-झुकी हैं डालियाँ,मंजर सरस सौगात||4||
आक-जवासा खेत में, रंग-बिरंगे फूल|
फूल-फूल को चूमते, कोमल-कोमल शूल||5||
पी कहाँ पपीहा रटे, ठहर गयी है रात|
सजनी साजन से मिली, पुलकित उभरे गात||6||
अबके इस मधुमास में, रहो सनम तुम साथ|
रस की दरिया में बहो, डाल गले में हाथ||7||

 --सुबोध कुमार सुधाकर, संपादक प्रमुख
क्षणदा प्रभा प्रकाशन, त्रिवेणीगंज,सुपौल.
मधुमास के दोहे///सुबोध कुमार सुधाकर मधुमास के दोहे///सुबोध कुमार सुधाकर Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 24, 2012 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.