ना जाने कितनी बाते करनी होती है तुमसे..... कहना था की मुझे कुछ मिले न मिले...
लेकिन जिन्दगी के हर मोड़ पर..
तुम मेरे साथ रहना..
सिर्फ तुम्हारे इक साथ के लिए
मैं अपनी हर ख़ुशी,हर ख्वाइश छोड़ दूंगी,
मेरे लिए कभी भी तुम्हारा,
ये प्यार कम ना हो.....
मैं सच में वैसी नही हूँ...
शायद तुम्हारी कल्पनाओं,
जैसी भी नही हूँ...
फिर भी जैसी भी हूँ...
सिर्फ तुम्हारी हूँ....
दिल से बहुत जुड़ते है रिश्ते...
मैंने अपनी भावनाओं,
अपने सपनो को....
अपनी ख़ुशी को जोड़ दिया है तुमसे.....
कुछ नही हूँ तुम्हारे बिना....
अपनी पहचान को भी तुमसे ही जोड़ा है....
अब जैसी भी हूँ... जो भी हूँ.. सिर्फ तुम्हारी हूँ....
--सुषमा आहुति, कानपुर
सिर्फ तुम्हारी हूँ....!!!///सुषमा आहुति
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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June 17, 2012
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June 17, 2012
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बहुत अच्छी कविता है |
ReplyDeleteतारीफ़ को शब्द नहीं मिल रहे .....
वैसे काबिलेतारीफ है आपकी ये कविता...