मंगलवार को अक्षय तृतीया मनाई गयी.अक्षय तृतीया को
सौभाग्य दिवस भी कहते हैं.यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि पूरे वर्ष में कोई भी तिथि
क्षय हो सकती है, लेकिन यह तिथि क्षय नहीं हो सकती, ऐसी मान्यता है.लेकिन
रामदत्तपट्टी की सरस्वती देवी के लिए यह अक्षय तृतीया केवल दर्द लेकर आयी है.९
मार्च को शादी हुई थी और कुछ ही दिन पहले वापस अपने मायके आयी थी.सोमवार को जब आग
लगी तो सरस्वती के सारे जेवरात और कपड़े राख में तब्दील हो गए.बदहवास सी सरस्वती
अपना सुध-बुध खो बैठी है.
कामरून
निशा के लिए यह हादसा दोहरी त्रासदी बनकर आयी है.पति लंबे समय से बीमार चल रहे हैं
और पांच छोटे-छोटे बच्चों के परवरिश की जिम्मेवारी उसके कंधे पर है.आग में सब कुछ
गंवाने के बाद सोच-सोच कर परेशान है कि इस नयी विपदा का सामना किस प्रकार संभव हो
सकेगा.मेहरूनिशा इस मामले में बदकिस्मत है कि दो दिन पहले ही परदेश कम रहे पति ने
३५ हजार रूपये भेजे थे जो अब मलबे का हिस्सा बन चुका है.
रामावतार यादव और उसकी पत्नी इंदू देवी पर मानो ग़मों का पहाड़ ही टूट पड़ा
है.किसान रामावतार की जमा पूंजी बैल थी जो अब नहीं रही.यक्ष प्रश्न यह है कि गेहूं
कि खेती के बाद अब खेतों में क्या होगा.इंदू देवी के लिए दूसरी बुरी खबर यह है कि
दो बकरी भी आग कि भेंट चढ़ गयी.इस दोहरे नुकसान की वजह से इंदू देवी के आंसू सैलाब
बनकर निकल रहे हैं.दरअसल गरीब लोगों के लिए बकरी और मुर्गा-मुर्गी किसी एटीएम से
कम नहीं होता है.इस हादसे में एक दर्जन से अधिक बकरी और बैल तथा दो दर्जन से अधिक
मुर्गा-मुर्गी को क्षति पहुंची है.जाहिर है, निम्नवर्गीय लोगों के आर्थिक आधार को
भारी नुकसान पहुंचा है.
इस
हादसे में कुछ लोग खुशकिस्मत भी साबित हुए हैं.ऐसे लोगों के घर के करीब से आग
निकलती चली गयी.लक्ष्मण यादव, कुसुम मंडल, मो.सईद, मो.सद्दीक, के घर आते-आते आग ने
अपना रूख बदल लिया और वे बदकिस्मती के दाग से बच गए.लेकिन जो हादसे के शिकार हुए
हैं उनके दर्द की फिलहाल कोई दवा नजर नहीं आ रही है.
...यहाँ पसरा है दर्द और केवल दर्द
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 25, 2012
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yahan log muglate mein hain ki gaono mein sabke ghar int ke ban gaue hain
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