जिला मुख्यालय के वार्ड नं०.१४ के संजीव कुमार
और उनकी पत्नी का पशु-प्रेम अदभुत है.इनके घर की तीनों बिल्लियाँ इनके प्रति बहुत ही संवेदनशील हैं.संजीव सदर अस्पताल मधेपुरा में काम करते हैं.इनके कार्यालय जाने के समय मिनी,बड़कू और मुन्नी नाम की ये बिल्लियाँ संजीव को बाहर तक छोड़ने आती हैं और फिर संजीव के कहने पर ये घर लौट जाती हैं.शाम में इनके वापस आने पर बिल्लियाँ संजीव के शरीर पर चढ़ कर खेलने लगती है.संजीव की पत्नी सीमा देवी बताती हैं कि एक बार जब वह बीमार पड़ी तो ये बिल्लियाँ रात भर उनके पेट से सटकर सोई रहीं.सबसे अलग बात यह है कि
नाम लेकर बुलाने पर वही बिल्ली पास आती है जिसका नाम पुकारा जाता है.संजीव के घर इन बिल्लियों के आने की कहानी भी मनुष्य और पशु के दर्द के रिश्ते को बयां करते हैं.


२००८ की कुसहा त्रासदी में इस इलाके के सारे घरों में बाढ़ का पानी भर गया था.कहीं से ये बिल्लियाँ बह कर संजीव के घर आ गयी.जहाँ खुद को बचाना मुश्किल था,वहीँ संजीव औए सीमा को इस जानवरों पर दया आ गयी और इन्होने खुद का पेट काटकर इन्हें भी भोजन देना शुरू किया.बस यहीं से मिनी,बड़कू और मुन्नी संजीव-सीमा के बच्चों की तरह हो गए.अब तो स्थिति ये है कि मुहल्ले के बच्चे संजीव और सीमा को बिल्ली अंकल और बिल्ली आंटी कह कर बुलाने लगे हैं.
आज जहाँ मनुष्य का मनुष्य के साथ सच्चा प्रेम मिलना मुश्किल लगता है,वहीं मानव का पशु के साथ इस तरह का व्यवहार एक अलग सीख दे जाता है.
अदभुत है ये पशु-प्रेम
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 17, 2012
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This is a emotional and nice news. we would have to learn with them ...
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