तुमको पाने की आस नहीं !

वो झीनी साड़ी में झलकता बदन ।
कोमल मधुवन चंचल चितवन ।
हिरणी सी उसका बलखाना ।
कर दे कितनें को दीवाना ।
वो मधुकुँज की मधुबाला ।
जिसको पाकर पीलुँ हाला ।
वो चँद्रवदन वो नीलनयन,
सबको पागल कर देती है ।
वो नैन नक्श वो कोमल ओँठ,
सबको ब्याकुल कर देती है ।
जब होंठ तुम्हारे हिलते हैं,
मोती झर झर झर झरते ।
आते जाते गलियों से,
हर अशिक आँहे भरते हैं ।
तुमको पाने की आस नहीं ।
मैं निर्धन हूँ कोई खास नहीं ।
मैं करूँ दुआ उस भगवन से,
तुमको भी शाहजहाँ मिले ।
जो याद में तेरे करे खड़ा,
वो ताजमहल सा जहाँ मिले ।
वो झीनी साड़ी में झलकता बदन ।
कोमल मधुवन चंचल चितवन ।

--रोहित सिंह, सिंघेश्वर,मधेपुरा
तुमको पाने की आस नहीं ! तुमको पाने की आस नहीं ! Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on December 27, 2011 Rating: 5

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