मुरलीगंज से संजय कुमार की रिपोर्ट/०१ दिसंबर २०११
एन एच १०७ के किनारे बसे मुरलीगंज के लोगों की जिंदगी डायवर्सन से बंध कर रह गयी है.इस वजह से लोगों को कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है.दरअसल आज भी यहाँ कुसहा त्रासदी से सम्बंधित जख्म के निशान मौजूद हैं.
मुरलीगंज शहर के बीच से बेंगा नदी गुजरती है जो कोसी की सहायक नदी है.कुसहा त्रासदी में मुरलीगंज बुरी तरह प्रभावित हुआ तो बाढ़ ने बेंगा घाट स्थित पुल को भी अपने आगोश में समा लिया.नतीजतन मुरलीगंज दो भागों में विभक्त होकर रह गया.त्रासदी के कुछ महीने बाद जब बेंगा नदी पर डायवर्सन बनाया गया तो मुरलीगंज का एकीकरण हुआ.अब यही डायवर्सन लोगों की लाइफलाईन है.लेकिन गाहे-बगाहे यह लाइफलाईन भी धोखा दे जाती है.इस वर्ष भी अगस्त माह में यह डायवर्सन बह गया और फिर से मुरलीगंज दो भागों में बाँट गया.इस डायवर्सन को ठीक करने में एक सप्ताह से अधिक लग गए.
दरअसल बेंगा नदी पर नए पुल बनने की कावायद तो शुरू हो गयी है लेकिन इसके कछुआ गति से इसके भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है.त्रासदी के दो वर्ष बाद पुल का निर्माण शुरू हुआ. राष्ट्रीय उच्च पथ प्रमंडल द्वारा ३ करोड़ ८९ लाख की लागत से इस पुल का निर्माण सितम्बर २०१० में शुरू हुआ.निविदा के अनुसार इसे एक साल में पूरा हो जाना था.लेकिन अब यह समय सीमा समाप्त हो चुकी है. सहायक अभियंता उच्च पथ एस एन तिवारी का कहना है कि नदी में पानी कम होने का इन्तजार किया जा रहा है.कार्य की मंथर गति को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले दो वर्षों में भी यदि यह पूरा हो जाय तो स्थानीय लोग खुद को खुशकिस्मत ही समझेंगे.
डायवर्सन से बंध कर रह गयी जिंदगी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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December 01, 2011
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pyar karne wale kabhi darte nahi.
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