आजादी आधी आबादी की

महाभारत का बैड ब्यॉय दु:शासन ने भरी सभा में महारथियों के बीच सरेआम द्रौपदी की आबरू को नीलाम करने का दुस्साहस दिखाया था.आज की अत्याधुनिका अपनी साड़ी स्वयं उतारने को उतावली है.
   नारियों और दलितों के प्रति समाज की अतीत में जो ओछी मानसिकता रही, उसके लिए हमारा समाज आज प्रायश्चित कर रहा है.दलितों की पैरोकारी नेत्री बहन मायावती कर रही है तो नारी जगत की कमान अभिनेत्री विपाशा बसु ने थाम ली है.मलाइका अरोड़ा बीड़ी सुलगाने की सुपाच्य सलाह देकर शरीर में सिहरन और दिल में धड़कन पैदा कर रही है.
   औरत की छप्पड़फाड़ आजादी आज की चड्ढीफाड़ राजनीति से होड़ लेती नजर आ रही है. नारी विमर्श का शोर चारों ओर है.मन्नू भंडारी तो दूर रही, मृदुला गर्ग, क्षमा शर्मा से लेकर तस्लीमा नसरीन जैसी मादा हस्तियाँ नारी की दशा और दिशा के चिंतन में दुबली होती जा रही है. वोट बैंकर्स की पैनी नजर भी कुछ कम नहीं जमी हुई है.
    कभी प्रथम राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की आत्मा भी निरीह नारी उर्मिला की दुर्दशा से आहत होकर रो दी थी-
     अबला तेरी हाय! यही कहानी,
     आँचल में दूध और आँखों में पानी!
काश! गुप्त जी आज जिन्दा होते, बाइक पर सवार नफासत के साथ ड्राइव करती बालाओं की अजीब भाव-भंगिमाओं और चमत्कारिक प्रदर्शन को देख स्वयं सिगरेट सुलगाते रोमांटिक मूड में वे एक फ़िकरा जरूर फेंक देते-
   बाले, तेरी जींस में कसी जवानी,
   पॉकेट में मोबाइल और आखों में शैतानी!
पिद्दी सा यह लघुयंत्र मोबाइल औरतों के मुंह और कान के साथ कुछ अधिक छेडछाड करता है.नामुराद मौका-बेमौका जिद्दी बच्चा सा ठुनकता रहता है.द्वापर का कृष्ण कभी मुरली की टेर सुनाता था, कलियुग की नई नस्ल आज मैसेज भेजती है.धक्-धक् गर्ल माधुरी कभी चोली के आगे-पीछे दिल की बात बताती थी, लेकिन आज कोई उससे पूछे तो वह ईमानदारी से मोबाइल का राज बताएगी.
   नई शिक्षा नीति ने नारीजगत को नया तेवर प्रदान किया है.उसका मानसिक फलक विस्तारित हुआ.ठेल-ठाल कर मैट्रिक पास वर को भी वधू इंटर पास चाहिए.वधू नौकरीशुदा हो तो दहेज का सूचकांक औंधे मुंह गिरने को बेताब रहती है.दुधारू गाय की लताड़ भली.
    नारी जगत ने तीव्रता से अपनी करवट बदली.बेचारी कब तक लोक-लाज की परवाह करती.आर्थिक युग है.संयुक्त परिवार का जमाना लद गया.नर-नारी के संयुक्त प्रयास से पारिवारिक सुविधा और समिधा जुटती है.आर्थिक उन्नति के लिए नारी को इतनी आजादी लाजिमी है.वैसे संविधान ने भी नर-नारी को अपना-अपना हक देने में कोताही नहीं बरता है.
   घर की शोभा अब बाहर की बहार बन चुकी है.आज नारियों की वही स्थिति है जो ढील दिए जाने पर आकाश में पतंग की होती है.नारी-सुलभ शालीनता का लगभग लोप हो चुका है.उधार की विदेशी अपसंस्कृति ने अपना पूर्ण पंख पसार दिया है.शिक्षा की नई रौशनी में फैशन और स्वेच्छाचारिता ने नई परिभाषा गढ़ ली है.ब्यॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड उसी की देन है.
    बाबा गांधी के चरखों ने अंगनाओं के अंगों को पूर्णत: ढंकने का भरसक प्रयास किया था.आज युवा गांधी के बड़े-बड़े कारखानों ने हसीनों की अजीबोगरीब हसरतों और हरकतों को देख तौबा बोल दिया है.बन्दा अपनी खोपड़ी खुजाकर बस इतना ही कह सकता है-
   विज्ञान ने बड़ी उन्नति कर ली,
   अब हम सुधरते जा रहे हैं.
   मगर, सुधरने से कहीं अधिक
   आज हम उघरते जा रहे हैं.
      विदेशी वस्तु पहली पसंद है,
      स्वदेशी गयी अब भांड में,
      बिकनी, चोली, चड्ढी छाई
      नए फैशन की आड़ में.


--पी० बिहारी बेधड़क, अधिवक्ता, मधेपुरा
आजादी आधी आबादी की आजादी आधी आबादी की Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 18, 2011 Rating: 5

2 comments:

  1. विदेशी वस्तु पहली पसंद है,स्वदेशी गयी अब भांड में,
    बिकनी, चोली, चड्ढी छाई ,नए फैशन की आड़ में !

    हाहा हा हा हा .... !! पी. बिहारी जी बेहद व्यंग आत्मत बातें है ... !!

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  2. इरफान यासीनThursday, 01 December, 2011

    हाहाहा पी. बीहारी जी, आपके द्रारा की गयी टीपीन्नी बेहद सटीक बैठती है, आजकल की गर्लस ऐसी ही है और उसको ऐसा 100% मोबाईल ने ही बनाया

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