राकेश सिंह/२६ नवंबर २०११
“मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ,
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।”
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ,
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।”
हरिवंशराय बच्चन की प्रसिद्द काव्य रचना ‘मधुशाला’ की उपर्युक्त पंक्तियाँ भले उस समय में जितनी भी प्रासंगिक रही हो, पर नीतीश कुमार के सुशासन में यह बात सटीक बैठती है.मौजूदा सरकार में न सिर्फ शराब की बिक्री से होने वाली आय में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है बल्कि शराब की दुकानों में भी भारी इजाफा हुआ है.आंकड़े बताते हैं कि जहाँ २००६-०७ में शराब की दुकानों की कुल संख्यां २८०० के करीब थी,आज ये संख्यां बढ़कर करीब ७००० हो गयी है. विभाग के सूत्रों के अनुसार देश में औसतन एक लाख की आबादी पर सात विदेशी तथा छह देसी शराब की दुकानें हैं जबकि बिहार में प्रति लाख आबादी पर विदेशी शराब की चार तथा देसी शराब की छह दुकानें खोलने की योजना पर तेजी से काम हो रहा है.सूत्रों की मानें तो राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में तीन ग्राम पंचायत पर शराब की एक दुकान खोल दी गई है. जानकार मानते हैं कि शराब से लोगों की आमदनी बढ़ी है और इससे निकले एक हिस्से ने सरकार के खजाने की रकम को भी बढ़ा दिया है.
आज बिहार सरकार ‘मद्य निषेध दिवस मना रही है.उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के द्वारा राज्य भर के समाहरणालय व अन्य जगहों पर इससे सम्बंधित बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगा दिए गए हैं,जिनपर सूबे के मुख्यमंत्री को गमगीन मुद्रा में दिखाया गया है और स्लोगन है “शराब नहीं जिंदगी अपनाएँ, नशा मुक्त बिहार बनायें”सवाल ये उठता है कि क्या सरकार सचमुच नशाखोरी के इस मुद्दे पर संजीदा है या फिर मद्य निषेध दिवस मनाना महज एक औपचारिकता ही है?
यहाँ सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि यदि सरकार बिहार को नशामुक्त बिहार बनाना चाहती है तो क्यों सरकार गली-गली शराब की दुकानें खुलवा रही है?रिकॉर्ड बता रहे हैं कि सरकार ने शराब की दुकानों की संख्यां हद से ज्यादा बढ़ा कर अपने खजाने को भरने में कोई कसर नहीं रखी है और नतीजा ये है कि शराबखोरी भी अत्यधिक बढ़ जाने से लाखों परिवार तबाह हो रहे हैं.अन्ना भले कह दें कि शराबियों को बाँध कर पीटो, पर सुशासन में अन्ना थ्योरी काम करने वाली नहीं है.बात साफ़ है सरकार शराब से हो रही प्रतिवर्ष हजारों करोड़ रूपये की आमदनी को दांव पर नहीं लगा सकती है, और ये नशामुक्त बिहार बनाने का सपना महज एक ढकोसला ही है.
क्या मद्य निषेध दिवस जनता के साथ छलावा है?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 26, 2011
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