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अपने बच्चों की बलि क्यूं नहीं चढाते? |
कुछ हिंदुओं ने भले ही इस आरोप का ठीकरा दूसरे के माथे फोड़ दिया हो कि वे बड़े पशुओं की हत्या कर अधर्म करते हों.पर धर्म के नाम पर बड़े पशुओं की बलि का नंगा खेल तथाकथित धर्म के ठेकेदार हिंदुओं की बस्ती में मस्ती से चल रहा है.इक्कीसवीं शताब्दी के इस वैज्ञानिक युग में भी इनके दिमाग पर अंधविश्वास का पर्दा इस तरह चढ़ा हुआ है कि इन्हें समझाने पर ये भड़क उठते हैं,और रोकने के प्रयास करने वालों की हत्या तक कर देने की बात करते हैं.
ये जानकर कि मधेपुरा जिले में भी एकाध जगह बड़े पशुओं की बलि बदस्तूर जारी है,हमारी टीम इसका जायजा लेने वहां पहुंची.कुमारखंड थाना का रामनगर गाँव,जहाँ माँ काली का बड़ा मंदिर है और यहाँ प्रति वर्ष दर्जनों भैंस के बच्चे (पाड़ा) की बलि चढाई जाती है.गाँव के काली मंदिर पहुँचने पर हमने देखा कि कुछ निरीह भैंस के बच्चों को नहला-धुला कर लाल कपड़े से ढँक दिया गया था,जिनकी बलि आज चढ़नी थी.(देखें:वीडियो).ये पशु अब भी वहां घास चरने में लगे थे,शायद इन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि कुछ ही घंटों में उनकी जीवनलीला समाप्त होने वाली है.यहाँ तथा आसपास के लोगों को इस बात से प्रेरित किया जाता रहा है कि मनोकामना पूर्ण होने पर बड़े
पशुओं की बलि चढ़ाना ही धर्म है, यदि ऐसा नहीं करोगे तो बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे.(देखें:वीडियो) शायद ऐसे ही लोग पूर्व में नरबलि का भी समर्थन करते रहे थे,जिसमे संभवत: निचले तबके के निरीह व्यक्तियों की गर्दन उनके परिवारवालों के सामने काट दिए जाते थे.छटपटाते शरीर को देखकरजहाँ परिवार के लोगों की चीत्कारें आसमान तक गूंजती थी,वहीं ये धर्म के ठेकेदार यह कहकर खुश होते थे कि अब भगवान खुश हुए. रामनगर के काली मंदिर के सामने एक स्थायी मजबूत खम्भा गाड़ा गया है जिसमे इन भैसों को बाँध कर तेज धार वाले हथियार से इनकी गर्दन उड़ा दी जाती है.फिर कटे शरीर को एक गड्ढे में फेंक दिया जाता है.कोई इसकी खाल नोचकर ले जाता है और बेचता है.बचा शरीर उसी तरह पड़ा रहता है.देखा जाय तो ऐसी नृशंस हत्या सिर्फ वहम और अंधविश्वास को जिन्दा रखने के लिए ही की जाती है.

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बलि को तैयार |
हमने जब इस विषय पर वहां के लोगों से बात की तो वे भड़क उठे.एक ने कहा कि इसे थाना-पुलिस या प्रशासन भी नहीं रोक सकता.जो रोकेगा,वही कट जायेगा.आपलोग इसे रोकने की बात दिमाग में भी लाते हैं तो घर भी वापस नहीं पहुँच सकेंगे.भैंस की बलि का समर्थन करने वालों की तादाद वहां ९९% थी.कुछ ने कहा कि एक साल किसी ने इसे रूकवाया तो पूरे गाँव में हैजा फ़ैल गया.माँ काली चाहती है कि बड़े पशुओं की बलि चढती रहे.रामनगर एक विशेष वर्ग के लोगों से भरा पड़ा है जिन्होंने सदियों से धर्म के नाम पर अंधविश्वास को जिन्दा रखने के अथक प्रयास किये है.एक ने तो यहाँ तक कुतर्क पेश किया कि धार्मिक छोडिये, इसके खाल को बेचकर एक परिवार का पेट साल भर चलता है.ये पूछने पर कि उसे पूरी भैंस ही क्यूं नही देते जिसे बेचकर उसे और अधिक पैसा होगा,वह बगलें झाँकने लगा. खैर,एक व्यक्ति हमें मिला जिसने इस प्रथा को यहाँ के लोगों का मानसिक दिवालियापन बताया.डा० शंकर यादव ने कहा कि विज्ञान के इस युग में ऐसी प्रथा से आर्थिक क्षति तो होती ही है साथ ही इतने बड़े-बड़े दर्जनों शरीर को फेंक देने से पर्यावरण भी दूषित होता है.(देखें:वीडियो)
हमने अपनी बात रखनी चाही कि इतने बड़े जानवर को काटकर यूं ही फेंक दिया जाता है,इससे बेहतर तो ये होता कि इन्हें बेचकर मंदिरों को दान दे दिया जाता जिसे मंदिर खर्च करती या फिर भूखों को भोजन देने का काम करती.पर वहां ऐसे लोगों की भरमार दिखी जो सदियों से धर्म के नाम पर अंधविश्वास बढ़ा कर अपना पेट बैठे-बैठे चलाते रहें है.दरअसल आस्था बहुत ही अच्छी चीज है.पर अत्यधिक आस्था में जब बुद्धि का नाश होने लगता है तो वह अंधविश्वास का रूप धारण करने लगता है. आसपास लोगों में खुसुर-फुसुर होने लगी कि इन पत्रकारों के सामने बलि प्रदान करना शायद ठीक नहीं होगा.और फिर हमें कहा गया कि भैंसों की बलि में काफी देर हो सकती है,कितनी
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इसी खम्भे से बांधकर दी जाती है बलि |
देर,इसका कोई ठीक नहीं है.धर्म के ठेकेदारों,जो तब से इस प्रथा का पूर्ण समर्थन कर रहे थे,की पोल खुलती नजर आई.जब आप इसे जायज समझते हैं तो कैमरे में गर्दन काटने और कटे शरीर के छटपटाने का वीडियो लेने देना क्यों नहीं चाहते है?चूंकि धर्म के ठेकेदारों ने अप्रत्यक्ष रूप से रोकने वालों की हत्या तक करने की धमकी दे डाली थी, इसलिए हमने भी वहां से चलना ही बेहतर समझा, ताकि पाठकों तक अन्य समाचार भी पहुंचाने के लायक रह सके.
(मधेपुरा टाइम्स अपने पाठकों से बड़े पशुओं की बलि पर राय चाहती है,कि ये कितना उचित है, और क्या ऐसे अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जाना चाहिए?अपनी राय इस खबर पर टिप्पणी के रूप में पोस्ट करें या फिर ई-मेल से हमें भेजें.हमारा ई-मेल का पता है: madhepuratimes@gmail.com)
(रूद्र ना० यादव के साथ राकेश सिंह)
(रूद्र ना० यादव के साथ राकेश सिंह)
बड़े पशुओं की बलि में कुछ हिन्दू भी हैं घोर अंधविश्वासी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 28, 2011
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