राकेश सिंह/०५ अक्टूबर २०११
महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर स्वच्छता अभियान की शुरुआत हो गयी.अधिकारियों ने जम कर भाषणबाजी की और इसके लक्ष्य पर भी गंभीरता से चर्चा हुई.चर्चा गंभीरता से हुई,पर काम कितना होगा,कोई नहीं जानता.इस अभियान का एक प्रमुख लक्ष्य था खुले में शौच की व्यवस्था समाप्त करना.अभियान के तहत भले जितनी ही बातें की जाय,पर हकीकत कुछ और ही बयां कर रहे हैं.
भारत के ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने हाल में कहा कि ये भारत के लिए शर्म की बात है कि जहाँ ६० फीसदी महिलाओं को खुले में शौच जाना पड़ता है.ये समाज की बेहद दुखद तस्वीर है.गांधी जी ने निर्मल गाँव बानाने का संकल्प लेने की अपील की थी,पर ऐसा लगता है कि हमारे द्वारा पर्याप्त प्रयास नहीं किये जा रहे हैं.ये भारत की छवि पर धब्बा है.
आंकड़े बताते हैं कि वर्ष १९९२-९३ में ७०% भारतीयों के पास शौच जाने की व्यवस्था नहीं थी और वर्ष २००७-०८ में भी ५१% लोगों को ये सुविधा नसीब नहीं.२०१० के आंकड़े कहते हैं कि अभी भी भारत में ६६ करोड़ ५० लाख लोग खुले में शौच करते हैं,जो ८० फीसदी बीमारी का कारण हैं.भारत इस मामले में विश्व में पहला स्थान रखता है जहाँ करीब १.४ करोड़ घरों में शौचालय नहीं है.देश में बिहार और झारखण्ड इस मामले में अव्वल है.
मधेपुरा जिले की यदि बात करें तो यहाँ अहले सुबह विभिन्न नदियों और झाड़ियों के पीछे अनगिनत लोग शौच क्रिया को अंजाम देते हुए मिल सकते हैं.सुबह और शाम के वक्त कई मुख्य मार्गों के बगल में भी शौच के लिए बैठी महिलायें गाड़ी की लाइट देखकर खड़ी हो जाती हैं.जाहिर है,इज्जत इन्हें भी प्यारी है और ये शौक से खुले में शौच नहीं जाते बल्कि इनके पास कोई दूसरा रास्ता अब भी नहीं है.गाँव-गाँव में सार्वजनिक शौचालय की पहल तो सरकार ने भले ही कर दी हो,पर ये योजनाएं भी लूट का शिकार हो जाती हैं.इन ग़रीबों के पैसों से जनप्रतिनिधि और ठेकेदारों के शौचालयों में टाइल्स और मार्बल तो लग जाते हैं,पर इन ग़रीबों के लिए शौचालय नहीं बन पाते हैं.गाँव की बात तो दूर,मधेपुरा जिला मुख्यालय में न तो ढंग से कोई सार्वजनिक शौचालय काम कर रहा है और न ही कोई पेशाबखाना.मुख्य मार्ग में पुरानी कचहरी के पास का पेशाबखाना ध्वस्त स्थिति में है जिसकी मरम्मत की आवश्यकता जिला प्रशासन महसूस नहीं कर रहा है.अगर बीच बाजार में आपको पेशाब जाने की जरूरत महसूस हो जाय तो आपको भीड़ वाले इलाके में ही कहीं सड़क के किनारे इस क्रिया को अंजाम देना पड़ेगा.महिलाओं को तो ऐसी स्थिति में घर लौटे बिना कोई चारा नहीं है.और विगत वर्षों में हालत कहीं से सुधार नहीं दिख रहा है.
ऐसे में जिले में स्वच्छता अभियान का डंका पीटना लफ्फाजी से बढ़कर कुछ नहीं.
खुले में शौच जाता है आधा भारत,स्वच्छता अभियान हो कैसे सफल?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 07, 2011
Rating:
No comments: