और क्या अरमान होगा...

आज फिर उनसे कुछ पूछूँगा,
एक हसरतो का बुना सवाल होगा.
नरम होंठो पर खिलखिलाती हंसी होगी,
और एक मासूम सा ख्याल होगा.
...
फिर आज उनसे एक एहसान मांगूंगा,
झपकती आँखों में एक खुलुस खुमार होगा.
धड़कती धडकनों में एक तड़प होगी,
और एक दफा ही सही, उन्हें मुझसे प्यार होगा.
...
ख्वाबो में मिलने ख्वाब फिर देखूंगा,
नींदों में डूबता मेरा ये जहाँ होगा.
फिर दरिया, फूलों और वादियों की गोद होगी,
और पर फैलाये खड़ा मुस्कुराता आसमान होगा.
...
एक और दफा आज फिर पाउँगा उन्हें,
ये एक अनोखा मेरे इम्तेहान होगा.
मेरी आगोश में फिर टूटेगी वो,
इस "मुसाफिर" का और क्या अरमान होगा.


--सुब्रत गौतम "मुसाफिर"
और क्या अरमान होगा... और क्या अरमान होगा... Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on September 18, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. आज फिर उनसे कुछ पूछूँगा,
    एक हसरतो का बुना सवाल होगा.
    नरम होंठो पर खिलखिलाती हंसी होगी,
    और एक मासूम सा ख्याल होगा.
    ...बहुत ही खुबसूरत पंक्तिया....

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