रूद्र ना० यादव/०२ जुलाई २०११
आलमनगर के मुरौत की स्थिति अब भयावह हो चुकी है.कोशी के गर्भ में शायद ये गाँव अब दो चार दिनों में समा जाय.कटाव की स्थिति लगातार भीषण होती जा रही है.गाँव के लोगों ने तो अपने घर को अपने ही हाथ से उजाड़ना पहले ही शुरू कर दिया था,अब बचे-खुचे सामानों के साथ लोगों की इस गाँव से विदाई अंतिम चरण में है.शायद कुछ ही दिनों के बाद इस गाँव की चर्चा लोग इन शब्दों में करे, “एक था मुरौत”.
अगर देखा जाय तो यहाँ के लोग इस जिले में सबसे बदकिस्मत रहे.उपरवाले ने तो ज्यादती की ही कि गाँव को पूरी तरह कोशी के हवाले कर दिया, नीचे वालों ने भी यहाँ के लोगों को लूटने में कोई कसर बाक़ी नही रखी.इस गाँव को बचाने का मुद्दा कई वर्षों से चल रहा था.अधिकारी और ठेकेदार में भी
मुरौत को बचाने के नाम पर सरकारी राशि का बड़ा ही दुरूपयोग किया.कहा जा सकता है कि गाँव के टूटे आशियानों से कई अधिकारी और ठेकेदारों के आशियाने सज गए.
मुरौत को बचाने के नाम पर सरकारी राशि का बड़ा ही दुरूपयोग किया.कहा जा सकता है कि गाँव के टूटे आशियानों से कई अधिकारी और ठेकेदारों के आशियाने सज गए.
एक था मुरौत: मुरौत होने को है मानचित्र से गायब
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 02, 2011
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