क्या ये सचमुच उम्र का दोष है?

हम बात कर रहे हैं मनुष्य के जीवन की किशोरावस्था की, जब बहुतों के कदम गलत रास्तों की ओर बढ़ जाते है. इस उम्र में होती है मन में ढेर सारी दुविधाएं और कमोबेश बहुत सारे मामलों पर कन्फ्यूज्ड होकर रह जाते हैं ये टीनएजर्स.
       जब इस उम्र लड़के या लड़कियां कोई गलती करते हैं तो बहुतों को ये कहते भी सुना जा सकता है कि ये उम्र का दोष है.बात बहुत हद तक सही भी है.दरअसल बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश करते ही शरीर में हार्मोन्स का बड़ा परिवर्तन होता है और यहाँ वे कुछ ज्यादा ही भावुक हो जाते हैं.छोटी-छोटी बातों पर गहराई से सोचने लगना और अधिकाँश निर्णय दिमाग से नहीं,दिल से होने लगता है.देखा जाय तो बचपन और इस उम्र के एक बड़ा फर्क ये भी है कि इस उम्र में कई कारणों से परिवार से कुछ दूरी और दोस्तों से नजदीकी बढ़ने लगती है और यहाँ दोस्तों की समस्याएं परिवार की समस्याओं के ज्यादा जरूरी लगने लगता है.बचपन में घरवालों का बात-बात पर टोकना और अब दोस्तों के साथ बिंदास सी जिंदगी में वे बाहर के लोगों में ही ज्यादा अपनापन महसूस करते हैं और यहाँ अक्सर भटक जाती हैं उनकी राहें.
      भटकाव के सबसे बड़े कारणों में है विपरीत सेक्स के प्रति अत्यधिक आकर्षण. ऑक्सीटोसीन, वेसोप्रेसिन, फेरोमोन्स आदि हार्मोन्स इस यौनाकर्षण के लिए जिम्मेदार होते हैं और यहाँ दिल दिमाग पर हावी होने लगता है.जी करता है सिर्फ दिल की बात सुनें, दिमाग की नहीं. ऐसे में अगर किसी विपरीत सेक्स से नजदीकी बढ़ जाती है तो अधिकाँश किशोर उसे पाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाते हैं. कुछ यही वजह है कि टीनएजर्स अक्सर प्यार को पाने के लिए परिवार की इच्छाओं को भी नजरअंदाज करने लगते हैं. मन पर दवाब तो तब और ज्यादा हो जाता है जब कैरियर की चिंता भी सताने लगती है.फैशन के प्रति भी आकर्षण और जिंदगी में बड़ा बनने की भी चाहत में टीनएजर्स होने लगते है कन्फ्यूज्ड.इस बात को भूलते हुए कि उस दौर से सभी गुजरे हैं, परिवार और समाज का प्रेशर इनके मन में बड़ों के प्रति थोड़ी घृणा और विद्रोह का भी भाव पैदा कर सकता है.अधिक खर्च और मौज-मस्ती की आदत के कारण तो कुछ किशोरों के कदम अपराध की दुनियां में भी पहुँच जाते है और कुछ तो अत्यधिक मानसिक दवाब और हताशा के कारण आत्महत्या भी कर लेने पर उतारू हो जाते हैं.
      वास्तव में टीनएजर्स की बहुत सारी समस्याएं हैं और निश्चित रूप से बड़ों को चाहिए की इनसे अधिकाँश मुद्दों पर बातचीत की जाय.इनकी समस्याओं को सुनें और इन्हें बदले हुए समय में कुछ आजादी भी प्रदान करे.इनसे दोस्ताना सम्बन्ध रखा जाय और गलत चीजों के विषय पर इन्हें सावधानी से समझाएं.कैरियर को लेकर अपनी इच्छा इनपर न थोपें बल्कि उसकी इच्छा पर भी गौर करना चाहिए.उनकी समस्यायों को नजरअंदाज न कर यदि उन्हें सही मार्गदर्शन दें तो शायद इनके कदम बहकने से बच जाएँ.
क्या ये सचमुच उम्र का दोष है? क्या ये सचमुच उम्र का दोष है? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 06, 2011 Rating: 5

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