कुछ पिता अपने बच्चों की परवाह नही करते और कुछ पिता अपने बच्चों के दायित्व को बखूबी समझते भी हैं. पर क्या ऐसा पिता संभव है जो बेघर बच्चों की देखभाल पिता की तरह करते हैं? ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ को मानने वाले वाराणसी के डा० आशीष न केवल अनाथ बच्चों को अपनी संस्था ‘कुटुम्ब’ में रहने की जगह देते हैं बल्कि उनकी पूरी देखभाल भी एक पिता की तरह ही करते हैं.वर्तमान में करीब ३० बच्चे डा० आशीष के कुटुम्ब फैमिली में हैं जिनमे से करीब आधे छ: वर्ष से भी कम आयु के हैं.इन सारे बच्चों की पढाई भी वे यहाँ कुछ स्वेच्छा से सेवा करने वाले लोगों की मदद से करते हैं.डा० आशीष के इस काम में उनकी पत्नी पूजा भी उनका साथ देती है.इनलोगों ने गरीब और अनाथ बच्चों के लिए कुटुम्ब स्कूल भी स्थापित किया है जिसमे अभी करीब ९० स्लम एरिया के बच्चों तथा कुटुम्ब परिवार में रहने वाले बच्चों को शिक्षा दिया जा रहा है.इनमें ज्यादातर बच्चे वैसे हैं जो स्कूल आने की स्थिति में नही है.डा० आशीष न केवल इन बच्चों के साथ ज्यादा वक्त गुजारते हैं बल्कि उनके सर्वांगीण विकास के लिए हर संभव
प्रयास भी करते हैं.बच्चों को पढाई में प्रोत्साहित करने के लिए बेहतर करने वालों को वे प्राइज भी देते हैं.कुटुम्ब स्कूल में पढ़ने वाले स्लम एरिया गरीब बच्चों के पिता से वे बच्चों के विकास पर बीच-बीच में बातें भी करते हैं.डा० आशीष ने अपनी सेवा भावना से समाज में एक मिसाल कायम किया है. ‘फादर्स डे’ पर हम ऐसी शख्सियत को नमन करते हैं.
प्रयास भी करते हैं.बच्चों को पढाई में प्रोत्साहित करने के लिए बेहतर करने वालों को वे प्राइज भी देते हैं.कुटुम्ब स्कूल में पढ़ने वाले स्लम एरिया गरीब बच्चों के पिता से वे बच्चों के विकास पर बीच-बीच में बातें भी करते हैं.डा० आशीष ने अपनी सेवा भावना से समाज में एक मिसाल कायम किया है. ‘फादर्स डे’ पर हम ऐसी शख्सियत को नमन करते हैं.
(मधेपुरा टाइम्स ब्यूरो)
डा० आशीष जैसे पिता बिरले ही होते हैं
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 19, 2011
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