गए शरद, बिजली गयी

गए शरद, बिजली गयी
और हुआ अँधेरा.
लालटेन युग में फिर घुसा
अपना ये मधेपुरा.
बाहर के नेता हैं आते
और जीत कर जाते हैं,
चमचों की जो फ़ौज यहाँ है,
खड़े-खड़े चिल्लाते है.
ना बिजली, ना सड़क यहाँ है
रेल भी खस्ता दिखती है,
नेताओं की नजरों में तो
यहाँ की जनता बिकती है.
कहते एमपी बड़े हैं हम
छोटों की क्यूं बात करें?
नेशनल लेवल पर हमको है,
और बहुत से काम पड़े.
अबकी उल्लू मत बन जाना,
चुनना ऐसे नेता तुम,
जो विकास कर जिला सँवारे,
उनकी खिदमत करना तुम.


--संदीप सांडिल्य, मधेपुरा.
गए शरद, बिजली गयी गए शरद, बिजली गयी Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 24, 2011 Rating: 5

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर इन नेतावों के लिए के सही है,बाहर के नेता को तो जीताना हमारी मूर्खता है.क्योकि इनका तो यहाँ कोई रहता है नहीं तो एहसास किसे होगा.

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  2. इन नेताओ का सही चित्रण किये हो ...जिधर -जिधर नेता उधर -उधर बिजली ........

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  3. you people are requested to do not choose this type of bastard leader to devlop our society

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  4. Really, very contemprary and factual. We need to wake up and choose our leader carefully.

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  5. Kya khoob kaha hai aapne guru ji. . .

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