मधेपुरा में बहुत से मामलों में अनुसंधान के क्रम में पुलिस की मनमानी चल रही है.पहले अपराध हुआ, फिर एफ आई आर दर्ज और पुलिस मामले के अनुसंधान में जुट गयी और यहाँ से बहुत से मामलों में जो खेल शुरू होता है वो काफी शर्मनाक है.घटना के बाद घटनास्थल पर वर्दी और पिस्टल के साथ चमकते इन अनुसंधानकर्ताओं की करतूत ने न्यायालय को भी परेशान कर रखा है.पीड़ित पक्ष भी यह भलीभांति जान चुकी है कि अगर कुछ दिए नही तो पुलिस मामले में आरोपियों के प्रभाव में
आकर केश कमजोर कर देगी. और यही सोच आरोपियों की भी है कि कुछ लेनदेन करके मामले को कमजोर करो ताकि न्यायालय से आसानी से जमानत मिल जाये.
आकर केश कमजोर कर देगी. और यही सोच आरोपियों की भी है कि कुछ लेनदेन करके मामले को कमजोर करो ताकि न्यायालय से आसानी से जमानत मिल जाये.
बहुत सारी घटनाओं में पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया और न्यायालय में लिखित दिया कि अभियुक्त के विरूद्ध आरोपपत्र दाखिल करने के पर्याप्त साक्ष्य हैं.अभियुक्त को जेल भेजा और एक-दो महीने के बाद फिर अभियुक्त न्यायालय के समक्ष ‘फायनल फॉर्म’ यह कहते हुए समर्पित करते हैं कि अभियुक्त
के विरूद्ध पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नही है.फिर अभियुक्त जेल से रिहा होता है.अब इन अनुसंधानकर्ताओं को कोई ये समझाए कि पहले के दावे से आपके पलट जाने के बीच एक निर्दोष जो इतने दिन जेल में रहा, उसके लिए क्या आप जिम्मेवार नही हैं?
के विरूद्ध पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नही है.फिर अभियुक्त जेल से रिहा होता है.अब इन अनुसंधानकर्ताओं को कोई ये समझाए कि पहले के दावे से आपके पलट जाने के बीच एक निर्दोष जो इतने दिन जेल में रहा, उसके लिए क्या आप जिम्मेवार नही हैं?
मधेपुरा जिले के पुरैनी थाना कांड संख्यां-८४/२०१० में तो हद ही हो गयी.सोनेलाल मंडल की हत्या के मामले में कुल बारह अभियुक्तों का नाम एफ आई आर में दर्ज हुआ.इसमें से कुल सात लोगों के विरूद्ध अनुसंधाकर्ता ने तो आरोपपत्र यह कहते हुए समर्पित कर दिया कि इनके विरूद्ध पर्याप्त साक्ष्य हैं.शेष पांच अभियुक्तों के विरूद्ध पुलिस ने यह कहते हुए ‘फायनल फॉर्म’ समर्पित किया कि इनके विरूद्ध साक्ष्य उपलब्ध नही है.जबकि केश डायरी में सभी गवाहों ने सभी बारहों अभियुक्तों को घटना को अंजाम देने की बात कही है.अब इस अनुसंधानकर्ता को कोई बताए कि एक ही तरह के साक्ष्य के आधार पर सात लोग उनकी नजर में अपराधी हैं और पांच लोग निर्दोष कैसे हैं? सूत्र बताते हैं कि इस तरह के केशों में पैसे का बड़ा खेल-वेल चलता है और अपराधी अपराध करके भी सुरक्षित रह जाता है.इन मामलों में राहत की बात सिर्फ ये होती है कि नामजद अभियुक्त के विरूद्ध यदि केश डायरी में कोई साक्ष्य उपलब्ध होते हैं तो न्यायालय पुलिस द्वारा तथाकथित निर्दोष अभियुक्तों पर भी ट्राइल जारी रख सकती है, जैसा कि इस पुरैनी थाना कांड संख्यां-८४/२०१० में भी हुआ.विद्वान मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने केश डायरी में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर पुलिस द्वारा निर्दोष माने गए पाँचों अभियुक्तों पर भी सम्मन जारी किया है और अब उन्हें भी न्यायालय में ट्राइल का सामना करना पड़ेगा.
ये तो एक बानगी भर है, जिले में ऐसे केशों की भरमार है जिसमें अनुसंधानकर्ता के अनुसंधान का काला सच देखने को मिल सकता है. जो भी हो, पुलिस की इस तरह की प्रैक्टिस स्वस्थ समाज के अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और पुलिस की इन करतूतों से अपराधियों के हौसले और बुलंद होते हैं.
अनुसंधान को मजाक बना रही मधेपुरा पुलिस
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 30, 2011
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