पंकज भारतीय/२६ मई २०११
खड़ा रहा जो अपने पथ पर,
लाख मुसीबत के आने में,
मिली सफलता उसको जग में,
कवि सोहनलाल द्विवेदी की यह पंक्ति सुपौल के उस गुदरी के लाल पर सटीक बैठती है जिसने तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हुए उस मंजिल को छूआ जिसे छूने का सपना हर प्रतिभाशाली का होता है.निम्न मध्यमवर्गीय के विकलांग छात्र ने आईआईटी में सफलता का परचम लहरा कर साबित किया है कि प्रतिभा संसाधन की मोहताज नही है.
सुपौल के सरायगढ़ प्रखंड के गंगापुर गाँव निवासी किसान मनोज यादव एवं अहिल्या देवी के बेटे रमेश कुमार आनंद ने विकलांगता श्रेणी में देश में ५०वां स्थान प्राप्त कर साबित किया है कि शारीरिक अक्षमता हौसले के आगे बौनी साबित हो सकती
है.बाएं हाथ की विकलांगता आनंद के लिए कभी बाधा नही बन सकी.बकौल आनन्द ‘विकलांगता मुझे हमेशा प्रेरणा देती रही’.यही मेरी इच्छाशक्ति में उत्प्रेरक साबित हुआ.’ वर्ष २००९ में १० वीं कक्षा नवोदय विद्यालय सुपौल से ९४% अंक के साथ उत्तीर्ण किया तो सपनों को पंख लग गए.स्कॉलरशिप
मिली तो प्लस टू में विकास विद्या निकेतन, विशाखापत्तनम में नामांकन हुआ और यहाँ ८८% अंक मिले.अब आईआईटी में सफलता मिली है जो उम्मीद के ही अनुकूल है.यह दीगर बात है कि आर्थिक
तंगी कभी-कभी इस फौलादी इच्छाशक्ति वाले को भी डिगा देती थी.आनंद मधेपुरा टाइम्स को बताते हैं, ‘घर की आर्थिक समस्या कभी-कभी परेशानी का सबब बन जाती थी.हालांकि छात्रवृत्ति की वजह से मुझे व्यक्तिगत समस्या नही आयी.’
है.बाएं हाथ की विकलांगता आनंद के लिए कभी बाधा नही बन सकी.बकौल आनन्द ‘विकलांगता मुझे हमेशा प्रेरणा देती रही’.यही मेरी इच्छाशक्ति में उत्प्रेरक साबित हुआ.’ वर्ष २००९ में १० वीं कक्षा नवोदय विद्यालय सुपौल से ९४% अंक के साथ उत्तीर्ण किया तो सपनों को पंख लग गए.स्कॉलरशिप
मिली तो प्लस टू में विकास विद्या निकेतन, विशाखापत्तनम में नामांकन हुआ और यहाँ ८८% अंक मिले.अब आईआईटी में सफलता मिली है जो उम्मीद के ही अनुकूल है.यह दीगर बात है कि आर्थिक
तंगी कभी-कभी इस फौलादी इच्छाशक्ति वाले को भी डिगा देती थी.आनंद मधेपुरा टाइम्स को बताते हैं, ‘घर की आर्थिक समस्या कभी-कभी परेशानी का सबब बन जाती थी.हालांकि छात्रवृत्ति की वजह से मुझे व्यक्तिगत समस्या नही आयी.’
आनन्द अपनी सफलता का श्रेय माँ-पापा और इंजीनियरिंग के छात्र भाई मुकेश को देते हैं.लेकिन हौसले की उड़ान अभी शेष है.बकौल आनंद ‘आईआईटी के बाद आईएएस बन प्रशासक की भूमिका अदा करना चाहूँगा.’माँ अहिल्या देवी कहती है ‘वर्षों पुरानी तमन्ना पूरी हुई.’ बचपन से मेधावी रहे आनंद ने अपने बलबूते सफलता की इबारत लिखी है.इसलिए वे मानते हैं कि संघर्ष के अलावा और कोई रास्ता नही होता है.आनंद के अनुसार ‘सफलता का कोई शॉर्ट-कट नही होता है.यहाँ कॉन्सेप्ट महत्वपूर्ण होता है.’
विकलांगता मुझे प्रेरणा देती रही -आनंद (आईआईटी में सफल)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 26, 2011
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