पंकज भारतीय/१२ अप्रैल २०११

“यार हमारी बात सुनो,
ऐसा एक इंसान चुनो
जिसने पाप न किया हो
जो पापी न हो.........”
सत्तर के दशक में राजेश खन्ना-मुमताज अभीनीत सुपरहिट फिल्म ‘रोटी’ का यह सुपर-डुपर हिट गाना आज अचानक ही कुछ ज्यादा ही प्रासंगिक नजर आने लगा है.वजह स्पष्ट है कि देश की राजधानी दिल्ली से गांवों की गलियों तक अन्ना हजारे का अनुयायी बनने की होड़ सी मची हुई है.होड़ ऐसी कि हर भ्रष्ट और पाक-साफ़ अन्ना हजारे नाम की बहती नदी में डुबकी लगा कर पुण्य का भागी बनना चाहता है.ऐसे ही पापियों का पाप धोते-धोते राम की गंगा भी मैली हो गयी और अब देखें आगे क्या होता है?

नि:संदेह राष्ट्रपिता गांधी के अमोध अस्त्र ‘सत्याग्रह’ को अपनाकर देश की संक्रामक रोग ‘भ्रष्टाचार’ के खिलाफ बिगुल बजाकर अन्ना हजारे ने देशहित में बड़ा काम किया है.लेकिन हजारे साहब को भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जंग में फूंक-फूंक कर कदम रखनी होगी.क्योंकि भ्रष्टाचार की मुखालफत में भ्रष्टाचारियों की एक बड़ी जमात मुखौटा पहन कर ‘जय अन्ना,जय अन्ना’ का जयकारा लगाने लगी है.प्रारूप कमिटी के सदस्यों के नाम पर बाबा रामदेव की शंका को ख़ारिज करना उचित नही होगा.इसलिए कि योग गुरु स्वयं लंबे समय से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहे हैं.
हैरत की बात यह है कि अन्ना हजारे के समर्थन में ‘बहरूपिये’ भी एकजुट होने लगे हैं.जिला मुख्यालयों एवं कस्बों में भी अन्ना के समर्थन में धरना,प्रदर्शन एवं जुलुस का आयोजन होने लगा है.’अन्ना नाम की लूट है लूट सके तो लूट’ का सिलसिला चल निकला है.
जरा गौर से देखिये इन तमाम चेहरों को.लगभग अस्सी फीसदी धरनार्थी और जुलुसार्थी एवं नैतिक समर्थन देने वाले लोग खुद भ्रष्टाचार के साक्षात अवतार हैं. याद आता है फिल्म क्रांतिवीर का बहुचर्चित डायलॉग “सौ में अस्सी बेईमान,फिर भी मेरा भारत महान”. इन नैतिक समर्थन देने वाले क्रांतिकारियों से यदि गीता, कुरान एवं बाइबिल की कसमें नही, अपने बेटे और बीबी की कसमे खिलाई जाय तो असलियत खुद-ब-खुद सामने आ जायेगी.जरा ईमानदारी से अपने दिल पर हाथ रखिये और बतलाइये कि आप अन्ना हजारे को नैतिक समर्थन देने लायक हैं?

भ्रष्टाचार का फलक बड़ा ही विस्तृत है.यह बहुआयामी एवं बहुपक्षीय होता है.किसी को भ्रष्टाचारी करार देना बड़ा ही आसान होता है.लेकिन भ्रष्टाचार को ग्लोबल बनाने में हमारी खुद की कितनी महती भूमिका रही है इसकी पड़ताल करना कोई मुनासिब नही समझता है.रिश्वत लेना और देना दोनों ही अपराध है तो फिर कोई एक दोषी क्यों?स्थिति दिनोंदिन बद से बदतर होती जा रही है और रिश्वत का नाम बदलकर अब ‘खुशनामा’ हो गया है.गांधी के देश में जहाँ करोड़ों भगवान का लोगों को बरदहस्त प्राप्त है भ्रष्टाचार का खेल अबाध गति से जारी है और भगवान भी चुप बैठे हैं.
अन्ना को समर्थन देने के लिए मीडियाकर्मियों को भी धन्यवाद.बतौर पत्रकार जब खुद पर और अपनी बिरादरी के लोगों पर निगाहें डालता हूँ तो पशोपेश में पड़ जाता हूँ.ईमानदारी से कहूँ तो हमें भी अन्ना को नैतिक समर्थन देने का कोई हक नही है.पत्रकारिता अब पेशा बन चुका है जिसमे विज्ञापन से लेकर चाटुकारिता तक के रंग उकेरने होते हैं.अन्ना-अन्ना चिल्लाना हमारी पेशागत मजबूरी है क्योंकि सर्कुलेशन एवं टीआरपी का सवाल है.जब तुलनात्मक दृष्टि डालते हैं तो इस बात से जले को ठंढक मिलती है कि हमाम में राजनेताओं और अधिकारियों से हम कम नंगे हैं.यह मीडिया ही है कि अन्ना हजारे जैसे नाम यहाँ जिन्दा हैं.
अन्ना हजारे ने कहा “अभी लम्बी लड़ाई लड़नी बाक़ी है”.नि:संदेह एक महज लोकपाल बिल पारित हो जाने से भारत में भ्रष्टाचार रातोंरात समाप्त नही हो जाएगा.यह सुखद संकेत है कि भ्रष्टाचार
के खिलाफ जंग में अन्ना हजारे एवं स्वामी रामदेव जैसे स्वच्छ छवि के लोग हमारी अगुआई के लिए तैयार हैं. लेकिन सवाल आज भी मौजूद हैं कि क्या हम देशवासी मन, वचन और कर्म से भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए तैयार हैं? भ्रष्टाचार का खात्मा केवल कानून से नहीं, दृढ़ इच्छाशक्ति के मिश्रण से ही संभव है.बड़ी मुश्किल और बड़े संयोग से भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद हुआ है.अगर हम इस उर्जा को कार्यरूप में परिणत नहीं कर सके तो इतिहास के पन्नों पर हम भी तटस्थ होने के आरोप में दोषी के रूप में नामजद होंगे.

अन्ना-अन्ना जपने का मौसम आया
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 12, 2011
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आपका लेख काबिले तारीफ है सच में ये एक लम्बी लड़ाई है जो हमसब को मिल कर लड़ना होगा,अन्ना हजारे की भावना को आपने अंदर पैदा करना होगा ये भ्रष्टाचार इस देश की समस्या नहीं है और भी बहुत कुछ है, और हर समस्या को आपना समस्या समझना होगा तभी एक बड़ा परिवर्तन हो सकता है.
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