रूद्र नारायण यादव/०३ मार्च २०११
ये मौका था युवा अधिवक्ता संजीव कुमार की लिखी पुस्तक 'न्याय की दास्तान' के लोकार्पण का.मंच पर अधिवक्ताओं और नेताओं के अलावे उपस्थित थे स्थानीय व्यवहार न्यायालय के साहित्यकार न्यायाधीश डा० रामलखन यादव जिनके हाथों इस पुस्तक का विमोचन हुआ .कार्यक्रम की उद्घाटनकर्ता थी बिहार के उद्योग एवं आपदा प्रबंधन मंत्री रेणु कुमारी कुशवाहा.
कोशी के कछार में घट रही अन्यायपूर्ण घटनाओं पर आधारित एक अच्छी पुस्तक का लोकार्पण तो विधिवत हुआ ही,पर वक्ताओं के भाषण से जो टीसें उभरकर सामने आईं उसने इस कार्यक्रम को न भूलने वाला
बना दिया.दरअसल पूर्व के वक्ताओं यथा चंद्रकिशोर यादव,मृत्युंजय प्र० सिंह,डा० रामलखन यादव आदि तो पुस्तक और लेखक पर ही केंद्रित रहे, पर जब मधेपुरा टाइम्स के प्रबंध संपादक राकेश सिंह को पुस्तक की समीक्षा हेतु बुलाया गया तो यहाँ से कार्यक्रम की दिशा और दशा ही बदल गयी.प्रबंध संपादक ने पुस्तक में निहित भाव को उजागर करते हुए समाज में हो रहे अपराध के सन्दर्भ में पुलिस को निकम्मी और न्याय प्रणाली को बेबस और कमजोर बताया.उन्होंने कहा की इस बात का गवाह है आये दिन जनता के द्वारा क़ानून को अपने हाथ में लेकर अपराधियों को मार गिराना.उन्होंने यह भी कहा कि कुख्यात अपराधकर्मियों के विरूद्ध गवाह नही मिलते और इस तरह अपराधियों का मनोबल बढ़ता है.और फिर इसके बाद अपनी बात रखने का मौका मिला सदर डीएसपी बाल्मिकी प्रसाद को.राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डीएसपी ने पुलिस की मजबूरी बताई और फिर उन्होंने न्यायालय की व्यवस्था पर भी प्रहार किया.उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली उबाऊ और जटिल होने के साथ-साथ अब अमीरों के लिए काम कर रही है.जिसके पास पैसा है वो न्याय को खरीद सकता है और गरीब थक-हार कर बैठ जाते हैं.उद्योग तथा आपदा प्रबंधन मंत्री रेणु कुमारी कुशवाहा ने भी प्रबंध संपादक की बातों के सन्दर्भ में समाज के जागने की आवश्यकता जताई.उन्होंने भी न्याय-व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि 'न्याय में न्याय कहाँ है?'
बना दिया.दरअसल पूर्व के वक्ताओं यथा चंद्रकिशोर यादव,मृत्युंजय प्र० सिंह,डा० रामलखन यादव आदि तो पुस्तक और लेखक पर ही केंद्रित रहे, पर जब मधेपुरा टाइम्स के प्रबंध संपादक राकेश सिंह को पुस्तक की समीक्षा हेतु बुलाया गया तो यहाँ से कार्यक्रम की दिशा और दशा ही बदल गयी.प्रबंध संपादक ने पुस्तक में निहित भाव को उजागर करते हुए समाज में हो रहे अपराध के सन्दर्भ में पुलिस को निकम्मी और न्याय प्रणाली को बेबस और कमजोर बताया.उन्होंने कहा की इस बात का गवाह है आये दिन जनता के द्वारा क़ानून को अपने हाथ में लेकर अपराधियों को मार गिराना.उन्होंने यह भी कहा कि कुख्यात अपराधकर्मियों के विरूद्ध गवाह नही मिलते और इस तरह अपराधियों का मनोबल बढ़ता है.और फिर इसके बाद अपनी बात रखने का मौका मिला सदर डीएसपी बाल्मिकी प्रसाद को.राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डीएसपी ने पुलिस की मजबूरी बताई और फिर उन्होंने न्यायालय की व्यवस्था पर भी प्रहार किया.उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली उबाऊ और जटिल होने के साथ-साथ अब अमीरों के लिए काम कर रही है.जिसके पास पैसा है वो न्याय को खरीद सकता है और गरीब थक-हार कर बैठ जाते हैं.उद्योग तथा आपदा प्रबंधन मंत्री रेणु कुमारी कुशवाहा ने भी प्रबंध संपादक की बातों के सन्दर्भ में समाज के जागने की आवश्यकता जताई.उन्होंने भी न्याय-व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि 'न्याय में न्याय कहाँ है?'
कुल मिलाकर संजीव कुमार की चर्चित पुस्तक 'न्याय की दास्तान' ने बाजार में आने के पूर्व ही लोगों को कई यादगार क्षण दे दिया.
'न्याय की दास्तान ' का लोकार्पण :नेता और न्यायाधीश बैठे साथ
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 03, 2011
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