राकेश सिंह/२३ फरवरी २०११
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१७ फरवरी २०११ को मुरलीगंज के मीरगंज में जो बस दुर्घटना हुई और उसके बाद घायलों को बचाने में वहां के ग्रामीणों का जूनून और उनकी मानवता तो पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना ही,साथ ही साथ अब इलाके के लोग इस घटना को एक और बड़ी घटना से जोड़कर देखने लगे हैं.
बिहार की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना ६ जून १९८१ को घटित हुई थी,जिसमे रात्रि में एक पैसेंजर ट्रेन की कई बोगियाँ खगड़िया के पास धमारा में नदी के पुल से नीचे जा गिरी थी.बताते हैं कि मरने वालों की संख्यां हजारों में पहुँच गयी थी.मरने वालों की संख्यां कम हो सकती थी,पर क्या हुआ था तब जिसने उस हादसे को और भी भयानक और दर्दनाक बना दिया?
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आइये हम खुल कर बताते हैं क्या सब हुआ था बोगियों के नदी में गिरने के बाद.जाहिर सी बात है उसके बाद ट्रेन में चीख-पुकार मच गयी.कुछ लोग तो चोट लगने से या डूब जाने से जल्द ही मर गए.कुछ लोग जो तैरना जानते थे उन्होंने किसी तरह गेट और खिड़की से अपने और अपने प्रियजनों को निकाला.पर इसके बाद जो हादसा था वो इस रेल दुर्घटना से भी बड़ा साबित हुआ.और यहीं बड़ा फर्क निकला मीरगंज के लोगों और धमारा के लोगों में.
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घटना की खबर पाते ही धमारा के पास के गाँव बंगलिया,हरदिया और बल्कुंडा आदि के लोग दौड पड़े थे घटना स्थल की ओर.तैर कर बाहर आने वालों से सामानों को छीनना शुरू किया इन्होने.यहाँ तक कि प्रतिरोध करने वालों को कुछ लोगों ने फिर से डुबोना शुरू किया.घड़ी और पैसे छीन-छीन कर जब इनका मन नही भरा तो वो कूद पड़े पानी में और तैरने में माहिर यहाँ के लोग ट्रेन में घुस कर सामान मिकाल कर घर की ओर चलते बने.लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि जान बचाकर किनारे तक पहुँची महिलाओं की आबरू से भी खेला गया था.बाद में जब पुलिस ने बंगलिया,हरदिया और बल्कुंडा गाँव में छापा मारा तो वहां कई घरों से टोकरियों में घड़ी के अलावे सूटकेस और गहने मिले.यानी दुनियां में कहीं भी मानवता इससे ज्यादा शर्मशार नही हो सकती.जो हाथ मदद के लिए आगे आना चाहिए था उन हाथों ने जो कुकृत्य किया उससे समूची मानव जाति कलंकित हुई.
आज मधेपुरा के लोग उस घटना और दुर्घटना को याद करके सिहर उठते हैं और वे गर्व महसूस करते है मीरगंज की दुर्घटना के बाद जब यहाँ के लोगों ने रात भर भूखे जग कर कई लोगों की जान बचा ली.सचमुच बड़ा फर्क है ६ जून १९८१ और १७ फरवरी २०११ में.
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