रूद्र नारायण यादव/२७ जनवरी २०११
इसे किस्मत का ही खेल कहा जाय कि जिन अपनों के लिए महेश्वरी ने अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया उन्होंने ही  आज महेश्वरी ऋषिदेव को मझधार में लाकर छोड़ दिया.बता दें कि महेश्वरी हत्या के आरोप में तीन साल से भी ज्यादा समय से जेल में है.गंभीर टीबी के रोग से ग्रसित महेश्वरी को अपनों का सहारा छूटा ही,सरकार और न्यायालय से भी कोई सहायता नही.खांसी बढ़ी,मुंह से खून ज्यादा आने लगा तो महेश्वरी को अस्पताल लाकर पटक दिया जाता है और जैसे ही थोडा आराम हुआ फिर जेल लाकर पटक दिया जाता है.जेल प्रशासन बेहतर इलाज के लिए इसे बाहर भेजना जरूरी नही समझता.महेश्वरी के साथ फंसे अन्य अभियुक्तों को न्यायालय ने जमानत पर रिहा कर दिया है.पर आज की तारीख में कोई नही है 
जो इसे केश से निकालने का प्रयास करे.मधेपुरा के फास्ट ट्रैक कोर्ट में फंसा है महेश्वरी का केस,पर त्वरित न्याय करने के उद्द्येश्य से बना यह त्वरित न्यायालय भी इसकी सुधि नही ले रहा.महेश्वरी कहते हैं "एक तो गाँव की साजिस को लेकर पुलिस ने झूठा फंसाया ऊपर से इलाज के डर से उसके परिवार वाले भी नही चाहते कि वह जेल से बाहर आये.नर्क से बदतर जिंदगी जी रहा हूँ मैं.इससे बेहतर तो मौत भली पर वो भी नही आती ".
जो इसे केश से निकालने का प्रयास करे.मधेपुरा के फास्ट ट्रैक कोर्ट में फंसा है महेश्वरी का केस,पर त्वरित न्याय करने के उद्द्येश्य से बना यह त्वरित न्यायालय भी इसकी सुधि नही ले रहा.महेश्वरी कहते हैं "एक तो गाँव की साजिस को लेकर पुलिस ने झूठा फंसाया ऊपर से इलाज के डर से उसके परिवार वाले भी नही चाहते कि वह जेल से बाहर आये.नर्क से बदतर जिंदगी जी रहा हूँ मैं.इससे बेहतर तो मौत भली पर वो भी नही आती ".
      महेश्वरी को अब तो न यहाँ के किसी न्याय पर भरोसा रहा और न ही भगवान पर.शायद सबों की उपेक्षा का इलाज महेश्वरी के शब्दों में मौत ही है.
फास्ट ट्रैक कोर्ट बना स्लो ट्रैक: महेश्वरी के मर्ज की दवा नहीं
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