रविवार विशेष-कविता- कितना आसान लगता था

कितना आसान लगता था
ख़्वाब में नए रंग भरना

आसमाँ मुट्ठी में करना
ख़ुश्बू से आँगन सजाना
बरसात में छत पर नहाना

कितना आसान लगता था

दौड़ कर तितली पकड़ना
हर बात पर ज़िद में झगड़ना
झील में नए गुल खिलाना
कश्तियों में, पार जाना

कितना आसान लगता था

जिंदगी में पर हक़ीक़त
ख्याल सी बिलकुल नहीं है
जिंदगी समझौता है इक
कोई जिद चलती नहीं है

जिंदगी में पर हक़ीक़त
सोच सी बिलकुल नहीं है

--श्रद्धा जैन,सिंगापुर 
रविवार विशेष-कविता- कितना आसान लगता था रविवार विशेष-कविता- कितना आसान लगता था Reviewed by Rakesh Singh on December 04, 2010 Rating: 5

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