दहेज़ का लालची समाज है हमारा,
बेटे को बेच कर इज्जत है कमाता,
दहेज़ के पैसे से बंगला बनाकर,
लोभी इंसान अमीर कहलाता,
बेटे के जन्म पे खुश हो जाता,
बेटी जन्मे तो शोक है मनाता,
दहेज के लिए बेटे को अफसर बनाता,
दहेज़ न मिले तो बहू को जलाता,
अपनी इज्जत को खाक में मिलाता,
बेटे को बेचने से फायदा क्या है,
अपनी इज्जत गवांने से फायदा क्या है,
मेहनत के पैसे से इज्जत बनाओ,
छोड़ो ये रस्मो रिवाज,
समाज में अपनी अलग पहचान बनाओ,
सामाजिक बुराइयों को जड से मिटाके,
विकसित और प्यारा देश बनाओ |
--पल्लवी राय,मधेपुरा
बेटे को बेच कर इज्जत है कमाता,
दहेज़ के पैसे से बंगला बनाकर,
लोभी इंसान अमीर कहलाता,
बेटे के जन्म पे खुश हो जाता,
बेटी जन्मे तो शोक है मनाता,
दहेज के लिए बेटे को अफसर बनाता,
दहेज़ न मिले तो बहू को जलाता,
अपनी इज्जत को खाक में मिलाता,
बेटे को बेचने से फायदा क्या है,
अपनी इज्जत गवांने से फायदा क्या है,
मेहनत के पैसे से इज्जत बनाओ,
छोड़ो ये रस्मो रिवाज,
समाज में अपनी अलग पहचान बनाओ,
सामाजिक बुराइयों को जड से मिटाके,
विकसित और प्यारा देश बनाओ |
--पल्लवी राय,मधेपुरा
रविवार विशेष- कविता- दहेज़ एक सामाजिक बुराई
Reviewed by Rakesh Singh
on
November 14, 2010
Rating:
thanks coments so good.
ReplyDeletehemant
poems could be the effective tool to eradicate such a heinous crime..thanks for writing.
ReplyDeletea lot of thanks to u both..............
ReplyDeleteदहेज निश्चित ही सबसे ज़्यादा घृणित सामाजिक रोग है जिसका इलाज केवल नौजवानों और नवयुवतियों के हाथ में है। आज सबसे ज़्यादा लोलुप तो यही हैं जो बिना कुछ किए ही अपना गाड़ी बंगला चाहते हैं और दहेज लेने की मूक सहमति देते हैं।
ReplyDelete