रविवार विशेष-व्यंग-बिहार को एक पागलखाने की जरूरत है.

बिहार को एक पागलखाने की जरूरत है.
मैं अपनी टकती झोंपड़ी में खाट खड़ी कर एक कोने में दुबका,चिंता सागर में गोते लगा रहा था.तभी मेरे स्वप्न गुरु अष्टावक्र जी दनदनाते आ धमके.गुरुजी से मेरा तार ठीक उसी प्रकार जुड़ा हुआ है जिस प्रकार आईएसआई से आतंकवादियों का.मैंने गुरु जी को साष्टांग प्रणाम किया.भींगे वस्त्रों में लिपटी उनकी टेढ़ी-मेढ़ी ठठरी हरकत में आई.फिर आशीर्वादी मुद्रा में उनका हाथ मेरे सर पर आ गया.
   मेरा उतरा चेहरा पढकर उन्होंने अपनी हुलिया के मुताबिक़ प्रश्न दागा-"बेधड़क,लेखनी के सिवा तुम्हे और कुछ चाहिए क्या?" "हाँ,गुरुजी!बिहार को एक अदद पागलखाना की जरूरत है.अखंड बिहार का एकलौता पागलखाना अब झारखंड का हो गया.खानगी पागलखाना के डाइरेक्टर डा० महादेव यादव के हवालात और अदालत के बीच कबड्डी खेलने की गुंजायश बढ़ गयी है.पहले त्रिस्तरीय पंचायत इलेक्शन फिर थोक में शिक्षक सेलेक्शन में कटे कनेक्शन से बौखलाए पगलाए प्राणियों के लिए कोई ठौर-ठिकाना तो चाहिए ही.आवेदन कलेक्शन के बाद अब दफ्तर वालों की शामत आ गयी है.उनके दिमागी नट  ढीले हो रहे हैं और चेहरे लाल-पीले हो रहे हैं." मैंने अपना सर झुकाते हुए कहा.
     'आखिर तुम किस फ्रेम में फिट बैठते हो? न नेता और न ओहदेदार हो फिर तुम्हारे पेट में जबरदस्त दर्द क्यों हो रहा है?' गुरुजी ने अनमनस्क मगर तिक्त स्वर में पूछा.गुरुजी की इस विषाक्त विरक्ति से तिलमिलाकर मैंने प्रतिवाद किया-"गुरुजी,हम बाल बच्चेदार प्राणी हैं.भूत सरकार ने हम बापों को बेरोजगार बनाया.अब इस प्रेत सरकार ने हमारे होनहार बेटों को बर्बाद करने का बीड़ा उठाया है.जो बच्चे कल डॉक्टर-इंजीनियर या वैज्ञानिक बन सकते थे,उन्हें अल्प तनखाभोगी गुरुजी बनाकर परिवार और राष्ट्र दोनों को चूना लगाना चाहती है."
  मेरी तीखी टिप्पणी को गुरुजी ने गंभीरता से लिया.हमदर्दी जताते हुए उन्होंने पूछा-'तुम कहना क्या चाहते हो? विस्तार से बताओ तो सही! 'बेधड़क', दिल के पके फफोले से मवाद निकलने दो नही तो टीस पैदा होती रहेगी.' मैं शुरू हो गया-'गुरुजी नई-नवेली बिहार सरकार के नित नवीन पहल से सर्वत्र हलचल है.जहां आधी आबादी को आधा हक देकर सरकार अपनी पीठ खुद थपथपा रही है,वहीं यथास्थितिवादी की एक बड़ी आबादी अपनी पीठ सहला रही है.नारी वर्ग ने पुरुष वर्ग के कन्धों पर सवार होकर भले ही चुनावी वैतरणी पार कर ली है,मगर अब बेचारी उनके चंगुल क्या;जबड़े में छटपटा रही है'.
    'दूसरी तरफ सरकारी शगूफा 'डिग्री लाओ,नौकरी पाओ' शिक्षित बेरोजगारों के लिए झंडूबाम सिद्ध हुआ.जिसे चौबीस घंटे अपने दर्दे दिल पर मल-मलकर हरे-पके,हारे-थके प्रतिभागी शिक्षक अपनी फटी-पुरानी डिग्री को रफू कर,फोटोस्टेट करवा कर या फिर सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों में मौत की सांसे गिन रही अपनी डिग्रीयों को विदा कर ले आने को बेताब नजर आ रहे हैं.सरकारी जुबां से निकली तुगलकी फरमान ने चूल्ही से दिल्ली तक दहला दिया.जहाँ पहली खेप में कभी पंचायत प्रतिनिधि खुद या बीबी को बनने-बनाने, अब गुरु-गुरुआईन हेतु बैक टू पवेलियन हुए.बिहार से बाहर रहकर चार पैसे कमाने वालों ने लोभ-लाभ के चक्कर में पड़कर खुद को फक्कड़ बना लिया है.आवेदन-निष्पादन हेतु खिड़कियों पर लटके लोगों को देखकर हनुमान-गढी के बंदरों की याद आ गयी और बेचारे बेरोजगारों को सर्कस करते-करते नानी क्या दादी भी याद आ गयी.बेचारों ने अपनी रही सही सारी उर्जा झोंक दी.
    अब  सरकार रोज-रोज पैंतरा बदल रही है.बार-बार सरकारी स्टैंड और स्टेटमेंट बदलने के कारण बेरोजगारों के चेहरे का रंग भी बदल रहा है.साँसे हलक में अटक रही है फिर सोये में उनकी आत्मा नौकरी देवी के पीछे भटक रही है.सच, गुरुजी!मजनूँ भी लैला की खातिर उतना कुछ नही कर पाया जितना कि एक अदद नौकरी के लिए शिक्षित बेरोजगारों ने किया है.सरकार हमेशा जनता को पीसती रही है जो उसकी कार्यशैली है और जनता हमेशा पीस क्या कूटवाकर भी उफ़ तक नही करती क्योंकि यह उसकी जीवनशैली बन गयी है.
      बिहार में सुधार के आसार दूर-दूर तक नजर नही आ रहे हैं.जनता ने सरकार से कुछ ज्यादा ही अपेक्षा मन में पाल रखी है.मगर सरकार है कि उसे बरगला रही है या पगला रही है.'लगभग हाँफते हुए मैंने कहा.
   मौन गुरुजी ने अपना मुखारबिंद खोला.आशावादी स्वर में बस इतना ही कहा-'सब्र करो.अधैर्य मत होओ बेधड़क!तुम्हे शायद ही पता होगा कि औद्योगिक क्रान्ति के बाद मंदी की मार से बीमार इंग्लैंड को कभी एक सनकी अर्थशास्त्री केन्स ने साबूत मकानों को तुडवा कर या फिर गड्ढे खुदवाकर-भरवाकर जिस प्रकार उबाड़ लिया था उसी प्रकार हमारे ओल्ड इंजीनियर कम चीफ मिनिस्टर साहब किसी तगड़ी जुगाड में लगे लगे हुए हैं."
मैंने कुछ कहना चाहा मगर गुरुदेव अंतर्ध्यान हो चुके थे.
                                     __पी०बिहारी'बेधड़क'
रविवार विशेष-व्यंग-बिहार को एक पागलखाने की जरूरत है. रविवार विशेष-व्यंग-बिहार को एक पागलखाने की जरूरत है. Reviewed by Rakesh Singh on November 07, 2010 Rating: 5

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