मुरौत से लौटकर रूद्र नारायण यादव/०४ अगस्त २०१०
वर्ष २००८ के कोशी की तबाही का मंजर तो सबको याद ही है जिसमे अनगिनत लोगों को कोशी की धारा बहा कर ले गयी और जो कोशी के गर्भ में समां गए उनमे से शायद ही कोई खुशकिस्मत जिन्दा बचा.जिले के आलमनगर के मुरौत गांव में कोशी की तबाही अंत लेने का नाम नही ले रही.गाँव का सफाया होने को है.लोग
अपने ही हाथ से अपने आशियाना को उजाड़ रहे हैं.अधिकाँश लोग घर छोड़कर भाग गए.कुछ ऐसे भी हैं इस गांव में जिनके पास यहीं रहकर अंतिम सांस का इंतजार करने के अलावे कोई दूसरा रास्ता नही है.जाएँ तो जाए कहाँ ! बचपन से बुढापा यहीं बिताया, अब इस आख़िरी समय में यदि
उपरवाले की यही इक्षा है कि यहीं अपने परिजनों को आँखों के सामने तडपकर मरता देखें,तो यही सही.
अपने ही हाथ से अपने आशियाना को उजाड़ रहे हैं.अधिकाँश लोग घर छोड़कर भाग गए.कुछ ऐसे भी हैं इस गांव में जिनके पास यहीं रहकर अंतिम सांस का इंतजार करने के अलावे कोई दूसरा रास्ता नही है.जाएँ तो जाए कहाँ ! बचपन से बुढापा यहीं बिताया, अब इस आख़िरी समय में यदि
उपरवाले की यही इक्षा है कि यहीं अपने परिजनों को आँखों के सामने तडपकर मरता देखें,तो यही सही.
पिछले ही पखवारे मुरौत की विमला देवी ने रात को सोते वक्त कभी नही सोचा था कि ये रात इतनी भयानक होगी.विमला देवी बताती है कि अचानक जोर के झटके से नींद टूटी तब अपने को नदी के गहरे पानी में पाया.धार इतनी तेज कि लगा सांस ही उखड़ जायेगी.मौत सामने खड़ी सरकारी उपेक्षा की दास्तान कह रही थी.विमला के घर का एक भाग कोशी के कटाव में रात में अचानक टूटकर नदी में समा गया था.बेटा और पति भी पानी में बह रहे थे कि अचानक कोशी की ही तेज धार ने विमला को पानी के ऊपर धकेल दिया जहाँ बगल में बह रहे एक पेड़ की डाल को विमला ने कस कर पकड़ लिया.तब तक पानी में तैरते निकलने की कोशिश में लगे बेटे रमेश ठाकुर की नजर माँ के हाथ पर पड़ी और फिर बेटे ने दूध का कर्ज चुका ही दिया.अपनी जान की परवाह न करते हुए बेटे ने खींच कर पानी से बाहर निकाल ही लिया जहाँ विमला ने बेसुध पड़े पति योगेन्द्र ठाकुर को जिन्दा देखा.
आज विमला का परिवार गांव में ही सड़क पर रहने को विवश है.संवेदनहीन सरकार से कोई उम्मीद नही है इन्हें.मौत के मुंह से बाहर आने की आपबीती सुनाती विमला फफक फफक कर रो पड़ती है.दहशत आज भी विमला की आँखों में स्पष्ट दिखाई पड़ता है.सरकारी उपेक्षा पर विमला कहती है-“भगवान बेकारे बचैलके, एहन जिंदगी से ते मौते बढ़िया रहै.”शायद सरकार अब भी संवेदनशील बने और कोशी द्वारा विमला जैसे अन्य बेघर हुए लोगों की पुनर्वास की व्यवस्था हो सके.
....और जब कोशी के गर्भ से जिन्दा लौटी-आपबीती सुनाते फफक पड़ी विमला
Reviewed by Rakesh Singh
on
August 04, 2010
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