रूद्र नारायण यादव/०८ जून २०१० सरकार द्वारा वोटर आईडी कार्ड बनवाने पर करोडो रूपये खर्च किये जा रहें है ताकि स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव हो सके परन्तु स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव की रीढ़ आई कार्ड को अधिकारी और सरकारी कर्मी बांटने के बजाय खेतों में फेकना ही मुनासिब समझ रहे हैं.इससे मतदाताओं को फोटो पहचान पत्र उपलब्ध करने के भारत निर्वाचन आयोग की प्रतिबद्धता भी निरर्थक साबित हो रही है.इसका खुलासा सोमवार को ग्वालपाड़ा प्रखंड के विभिन्न पंचायतों के लगभग एक हजार मतदाता पहचान पत्र लावारिस हालत में बीडीओ कार्यालय के समीप खेत में बिखरे पड़े मिले.ग्वालपाड़ा के ही एक किसान मो० इस्लाम सिद्दीकी ने उसे ग्वालपाड़ा थाना को उठाकर सौंप दिया और इसकी सूचना स्थानीय बीडीओ व प्रखंड प्रमुख को भी दे दी. इस बाबत ग्वालपाड़ा प्रखंड के बीडीओ अनिल कुमार पाण्डेय ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि ये दु:खद और घोर अन्याय की बात है कि महत्वपूर्ण मतदाता पहचानपत्र इस तरह खेतों में कैसे फेके गए.उन्होंने कहा कि इसकी जांच कर दोषी कर्मचारी के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही की जायेगी.हैरत की बात तो यह है कि खेतों में फेके गए मतदाता पत्र वर्ष २००२ एवं २००४ के बने हुए हैं तो किस परिश्थिति में इसे मतदाताओं के बीच वितरण नहीं करके प्रखंड कार्यालयों में संजो कर रखे गए थे और फिर पूरे कचरे की तरह फेंक दिए गए.यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि वर्ष २००२ से अब तक ये १००० मतदाता पहचानपत्र के अभाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने से वंचित रह गए, इसके जिम्मेवार कर्मी को क्या सजा मिल पायेगा?ये सवाल हर कोई समाज के जागरूक प्रबुद्ध जनों से कर रहे हैं.कुल मिलाकर मधेपुरा जिले में मतदाता पहचानपत्रों की स्थिति इसी तरह है.
कचरे की तरह फेके गए वोटर आईडी कार्ड
Reviewed by Rakesh Singh
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June 08, 2010
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