सुकेश राणा/१९ मई/२०१०
राज्य के उद्योग-धंधे को पटरी पर लाने का दावा करने वाली सरकार की पार्टी के आलाकमान के गृह जिला मधेपुरा स्थित जिला उद्योग का हाल खुद काफी कुछ बयां कर रहा है.शहर के सुदूर कोने में पश्चिमी बाय पास रोड में ग्रीन पार्क मोहल्ला स्थित जिला उद्योग केन्द्र आज जिले के लोगों के लिए खोज का केन्द्र बन गया है.हालत यह है कि कार्यालय तक पहुँचने के लिए जहाँ लोगों को घर-घर जाकर पूछना पड़ रहा है
वहीं केन्द्र का बोर्ड कार्यालय कैम्पस में पड़ा मृत जीप के पीछे लटका अपनी बधहाली के आंसू बहा रहा है.खुद को लाचार और निरीह मानने वाले इस विभाग के आलाधिकारी अपनी गलती को स्वीकार करने की बजाय दूसरों पर दोष मढने में माहीर दिख रहे हैं.इस केन्द्र की उपलब्धि पूछे जाने पर महाप्रबंधक आर०एन० चौधरी कहते हैं की इस केन्द्र को चमकने नहीं देने के लिए सभी बैंक जिम्मेदार हैं.वे बताते हैं कि जब हमलोग जरूरत मंदों का ऋण स्वीकृत कर बैंक भेजते हैं तो बैंक अडंगा लगा देता है जिस कारण लाभार्थी के पास हाथ पर हाथ धरे रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है.महाप्रबंधक कहते हैं कि पिछले वित्तीय वर्ष २००९-१० के लिए प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों के लिए २०३ आवेदन लिए जबकि बैंक ने सिर्फ एक को ऋण स्वीकृत करते हुए मात्र २ लाख रूपया मुहैया कराया, जबकि इस पूरे कार्यक्रम के अध्यक्ष जिलाधिकारी होते हैं.हालात यह है कि जिला उद्योग केन्द्र न तो जिले में उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कोई प्रशिक्षण चला रहे है न ही छोटे व मझोले उद्यमी के पीछे खड़े दिख रहे हैं.बहुत से लोगों का यह भी कहना है कि जिला उद्योग केन्द्र दलालों के चंगुल में फंसा हुआ है.
वहीं केन्द्र का बोर्ड कार्यालय कैम्पस में पड़ा मृत जीप के पीछे लटका अपनी बधहाली के आंसू बहा रहा है.खुद को लाचार और निरीह मानने वाले इस विभाग के आलाधिकारी अपनी गलती को स्वीकार करने की बजाय दूसरों पर दोष मढने में माहीर दिख रहे हैं.इस केन्द्र की उपलब्धि पूछे जाने पर महाप्रबंधक आर०एन० चौधरी कहते हैं की इस केन्द्र को चमकने नहीं देने के लिए सभी बैंक जिम्मेदार हैं.वे बताते हैं कि जब हमलोग जरूरत मंदों का ऋण स्वीकृत कर बैंक भेजते हैं तो बैंक अडंगा लगा देता है जिस कारण लाभार्थी के पास हाथ पर हाथ धरे रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है.महाप्रबंधक कहते हैं कि पिछले वित्तीय वर्ष २००९-१० के लिए प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों के लिए २०३ आवेदन लिए जबकि बैंक ने सिर्फ एक को ऋण स्वीकृत करते हुए मात्र २ लाख रूपया मुहैया कराया, जबकि इस पूरे कार्यक्रम के अध्यक्ष जिलाधिकारी होते हैं.हालात यह है कि जिला उद्योग केन्द्र न तो जिले में उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कोई प्रशिक्षण चला रहे है न ही छोटे व मझोले उद्यमी के पीछे खड़े दिख रहे हैं.बहुत से लोगों का यह भी कहना है कि जिला उद्योग केन्द्र दलालों के चंगुल में फंसा हुआ है.
जिला उद्योग केन्द्र- खोज का केन्द्र
Reviewed by Rakesh Singh
on
May 20, 2010
Rating:
Sar mera lon nahi milega kiya
ReplyDelete