बच्चों का चाहते हैं उज्ज्वल भविष्य तो उन्हें कदापि न पढ़ावें कदाचार का पाठ

मधेपुरा में परीक्षा का मौसम जैसे ही आता है, छात्र और अभिभावक सक्रिय हो जाते हैं. होना भी चाहिए, लेकिन हर हालत में सक्रियता बेहतर भविष्य को देखते हुए हो.
मधेपुरा में कदाचार का पुराना इतिहास रहा है और इसमें सबसे अधिक दोषी यदि किसी को माना जा सकता है तो वो हैं कुछ अभिभावक. वैसे छात्रों और अभिभावकों का ब्रेन वाश करने में शिक्षा माफियाओं ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखी है. यही वजह है कि अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लोभ में वे माफियाओं के बिछाए जाल में उलझ कर बच्चों के भविष्य का बेड़ागर्क कर बैठते हैं.
      इन्टरमीडिएट और मैट्रिक परीक्षाओं में शिक्षा माफियाओं की दुकानें खूब चलती रही है. अशिक्षित माने जाने वाले इस क्षेत्र में जहाँ शिक्षकों ने अपने स्कूल और कॉलेजों में शिक्षा का बंटाधार कर रखा है वहीँ वे छात्रों को अच्छे मार्क्स दिलवाने के लिए उन्हें शॉर्टकट रास्ता दिखाते हैं.

क्या है शिक्षा माफियाओं की कार्यशैली?: हाल तक शिक्षकों के कई गुट परीक्षार्थियों को अच्छे रिजल्ट का प्रलोभन देकर पूरा-का-पूरा ठेका ले लेते थे. एडमिशन से फर्स्ट डिवीजन तक की ठेकेदारी में छात्रों को स्कूल-कॉलेज आने की जरूरत नहीं होती थी. रजिस्टरों में उपस्थिति दिखाई जाती रहती थी और फिर फॉर्म भर कर सिर्फ परीक्षार्थियों के हस्ताक्षर ले लिए जाते थे. परीक्षा के दौरान पटना से ही मैनेज कर मनचाहा केन्द्र करवाना इन शिक्षा के कोढों के लिए चुटकी बजाने जैसा आसान काम था. केन्द्र पर चोरी से अपने छात्रों को लिखवाने के बाद भी इनके कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं होती थी. जांच के लिए जहाँ कॉपियां जाती थी, वहाँ भी जाकर ये मैनेज कर आते थे. इतना ही नहीं, बोर्ड में जाकर टेबुलेशन तक श्रीमान लगे रहते थे. सौ-दो सौ छात्रों का ठेका यदि इन्हें मिल जाता था तो सम्बंधित शिक्षा माफिया एक सीजन में करोड़पति हो जाते थे.
      हैरत और शर्म की बात तो ये होती है जब ऐसे शिक्षक सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती (5 सितम्बर) यानी शिक्षक दिवस बड़े ही धूमधाम से मना कर शिक्षा व्यवस्था में सुधार पर लंबा-चौड़ा भाषण भी दे डालते हैं.

छात्रों का भविष्य होता है अंधकारमय: सिर्फ अच्छे मार्क्स लाना किसी छात्र के भविष्य को तबतक सुरक्षित नहीं बना सकता है जबतक कि उसे विषयों की गहन जानकारी न हो. प्रतियोगिता परीक्षाओं में ऐसे छात्र फिसड्डी साबित हो जाते हैं और अपनी योग्यता के बल पर उनसे कम अंक प्राप्त किये छात्र बाजी मार ले जाते हैं. उस वक्त शायद उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है और फिर वे शिक्षा की अर्थी निकालने वाले उन शिक्षकों को कोसते हैं और साथ में अपने अभिभावकों को भी भला-बुरा कहते हैं क्योंकि उन्होंने भी शोर्टकट का समर्थन करते हुए अपनी गाढ़ी कमाई शिक्षा माफियाओं के खजाने में फेंक दी थी. बच्चों को असफल होते देख तब उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है कि यदि उन्होंने बच्चों को कदाचार के बजाय कड़ी मिहनत का पाठ पढाया होता तो शायद जिंदगी की दौड़ में उनके बच्चे भी उनका नाम रौशन कर रहे होते.
      पर अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत.
कुछ वर्ष पहले तक कैसे होती थी यहाँ परीक्षा, मधेपुरा टाइम्स के वीडियो को देखकर आपके होश उड़ जायेंगे. वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें.
बच्चों का चाहते हैं उज्ज्वल भविष्य तो उन्हें कदापि न पढ़ावें कदाचार का पाठ बच्चों का चाहते हैं उज्ज्वल भविष्य तो उन्हें कदापि न पढ़ावें कदाचार का पाठ Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 13, 2015 Rating: 5

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