कहाँ-कहाँ मनाइएगा डिग्री और योग्यता का मातम ! (भाग-1)

मानव संसाधन विकास मंत्री की शैक्षिक योग्यता पर उठ रहे सवालों के आइने में आइए भारतीय समाज का चेहरा देखते हैं ।
            किसी भी मसले पर विरोध के कई तरीक़े हो सकते हैं। पार्टीगत प्रतिबद्धता के आधार पर विरोध । विचारधारा के आधार पर विरोध । जनविरोधी नीतियों के आधार पर विरोध । अक्षमता, असफलता, अनिर्णय और अयोग्यता के आधार पर विरोध । पसंद-नापसंद के आधार पर विरोध । इसके अलावा विरोध के और भी कारण हो सकते हैं, मसलन जाति, वर्ग, धर्म, क्षेत्र, लिंग आदि-इत्यादि ।
            किसी भी वस्तु-स्थिति के विश्लेषण के लिए दिल, दिमाग़, दृष्टि और दृष्टिकोण का निरपेक्ष होना लाज़िमी है, लेकिन भारत में 'कौवा कान लेकर भागा' का शोर मचाने की मानसिकता से बहुतेरे लोग पीड़ित दिखाई देते हैं । यहाँ का Evaluation Methodology ( मूल्याँकन प्रक्रिया) कुछ ऐसा है कि जिसे आप पसंद कीजिए, उसे हीरो बना दीजिए, जिसे नापसंद कीजिए, उसे ज़ीरो बना दीजिए ।
             भारतीय मीडिया के मंच पर साधारण से साधारण और गम्भीर से गम्भीर मसलों पर कांव-कांव और झांव-झांव के शोरगुल में असली सवाल गुम हो जाते हैं । यही कारण है कि आमतौर पर कोई परिणाम नहीं निकलता और  मामला 'वहीं ढाक के तीन पात' साबित होता है ।
        इस तरह के मामले में मीडिया प्रत्यक्ष रूप से अभियान चलाकर,अप्रत्यक्ष रूप से किसको लाभ / फ़ायदा पहुँचाना चाहता है। इस अभियान में कारपोरेट का कितना हित और हिस्सेदारी छुपा होता है,आम लोग सूक्ष्म रूप से इसका मूल्याँकन नहीं कर पाते हैं । यह एक पुरानी परिपाटी रही है जो अब भी जारी है ।
          एक बार एक राजा अपने बेटे को दी गयी शिक्षा में भेद-भाव के मामले को लेकर गुरू से शिकायत की । गुरू ने राजा के सामने ही उसके बेटे और  'रंक' के बेटे से पूछा कि हमारे बंद मुठठी में गोल आकार की एक वस्तु है,जिसके बीच में छेद है,क्या हो सकती है ? राजा के बेटे ने कहा चक्की ( हम लोग इसे गाँव में चकरी कहते हुए सुने हैं,इसमें दाल दरा जाता था और  गेहूँ पीसा जाता था) । फिर रंक के बेटे से पूछा,तुम बताओ ! उसने कहा, आपकी मुठ्ठी में गोल आकार की जो वस्तु है, वह अंगुठी हो सकती है ।

       गुरू ने राजा से कहा राजन् ! हमने शिक्षा देने में कोई भेद-भाव नहीं की । दोनों को समान शिक्षा दी। हमने दोनों से एक ही सवाल किया, लेकिन दोनों ने अपने-अपने विवेक से उत्तर दिया । हाथ में चक्की कैसे समा सकती है । ज़ाहिर है, अंगुठी और चक्की के आकार में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है ।
      ज्ञान सिर्फ़ पढ़े-लिखों के पास ही होता है,अनपढ़ निरा गँवार होते हैं । इसका कोई वैज्ञानिक पैमाना नहीं है । कई मामलों में ज्ञान और  विवेक को किसी डिग्री के तराज़ू पर तौलना प्राकृतिक न्याय के ख़िलाफ़ चला जाता है । आज भी समाज में बिखरे ज्ञान और  किताबों में दर्ज ज्ञान के बीच कोई संतुलन और सामंजस्य नहीं है ।
      किसी एक की योग्यता पर यदि लक्ष्य किया जा रहा है, इसका मतलब है कि बाक़ियों को,जिनकी योग्यता और दाग-धब्बे पर गम्भीर विमर्श होना चाहिए था,उन्हें जानबूझकर छुपाया जा रहा है या उसकी अनदेखी की जा रही है ।
       जिस देश में पूरी आबादी की 75/80 फ़ीसदी जनता कृषि से जुड़ी हो वहाँ के कृषि मंत्री की योग्यता क्या होनी चाहिए ? ज़ाहिर है, कृषि मंत्री का पद उसे मिलना चाहिए जो हल चलाना जानता हो, फ़सल बोना-काटना जानता हो । सिंचाई और  फ़सलों की देखरेख की जानकारी रखता हो । पैर के अंगूठे को खेत में धँसा कर उसकी ओदी / नमी परख कर लेता हो । ज़ाहिर है, ऐसे लोगों को बनना चाहिए,लेकिन कृषि मंत्री कौन बनता है ? कृषि से संबंधित योजना कौन बनाता है ? उसे लागू कौन कराता है ? यह एक जलता हुआ हक़ीक़त है,जिस पर विमर्श नहीं  होता ।
           सवाल उठता है, शैक्षिक योग्यता सिर्फ़ एक के लिए क्यों ? सभी के लिए क्यों नहीं ? वैसे तो ग्राम प्रधान, बीडीसी, क्षेत्र पंचायत सदस्य, ज़िला पंचायत सदस्य, विधायक, विधान परिषद सदस्य, लोक सभा सदस्य, राज्य सभा सदस्य, केन्द्रीय मंत्रि, राज्य मंत्री, लोक सभा स्पीकर, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, उपराष्ट्रपति और  राष्ट्रपति सभी के लिए शैक्षिक योग्यता होनी चाहिए साथ में अनुभव भी, खाना पूर्ति का नहीं असली, लेकिन  हक़ीक़त में क्या है ?

ज़रा सोचिए !
जिस दिन शैक्षिक योग्यता की अनिवार्य हो जायेगी, उस दिन देश का क्या हाल होगा ? फिर तो इस योग्यता में परसेंटेज भी जोड़ा जायेगा ? मूल्याँकन करने वाले कौन लोग होंगे ? किस जमात के लोग होंगे ? किस आधार पर मूल्याँकन करेंगे ? इसमें क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाई-भतीजावाद और धर्मवाद की क्या भूमिका होगी ? अंदाजा लगाइए । यदि ऐसा हुआ तो फिर वह समाज कैसा बनेगा ? जो लोकतंत्र है,चाहे जैसा भी है, कैसा होगा ? फिर से शीशा पिघलाकर कान में डालने की परम्परा शुरू होगी ? अंगुठाकाट द्रोणाचार्य पैदा होंगे ! (क्रमश:)


डॉ. रमेश यादव
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, जर्नलिज्म
इग्नू, नई दिल्ली.
कहाँ-कहाँ मनाइएगा डिग्री और योग्यता का मातम ! (भाग-1) कहाँ-कहाँ मनाइएगा डिग्री और  योग्यता का मातम ! (भाग-1) Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on May 29, 2014 Rating: 5

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