सवाल तो यह भी उठना चाहिए था कि 16 वीं लोकसभा के सभी सदस्यों की शैक्षिक योग्यता क्या है ?
इसमें कितने हैं, जो अपराधी और दाग़ी हैं ?
कितने साम्प्रदायिक हैं ? कितने पूँजीपति हैं ? उनके पास पूँजी कहाँ से आयी ? उसका स्रोत क्या रहा ? जो मंत्री बने, उनके योग्यता का आधार क्या रहा ?, लेकिन इस मसले पर मीडिया में बहस वर्जित है
। क्यों ? सर्वविदित है ।
अच्छा ये बताइए !
पढ़ने-लिखने का क्या मानक होना चाहिए, क्या यह व्यवस्था देश में एक समान है ? अनपढ़, 12 वीं पास और 'डी लिट' डिग्रीधारी के सोच, विचार और चिंतन में फ़र्क़ का मानक क्या होना चाहिए है ? कबीर को किस श्रेणी में रखा जायेगा ? जो कबीर को पढ़कर, उनपर लिखकर बड़े-ओहदे हासिल किये
अच्छा ये बताइए !
पढ़ने-लिखने का क्या मानक होना चाहिए, क्या यह व्यवस्था देश में एक समान है ? अनपढ़, 12 वीं पास और 'डी लिट' डिग्रीधारी के सोच, विचार और चिंतन में फ़र्क़ का मानक क्या होना चाहिए है ? कबीर को किस श्रेणी में रखा जायेगा ? जो कबीर को पढ़कर, उनपर लिखकर बड़े-ओहदे हासिल किये
। पुरस्कार झटके, लेकिन कबीर नहीं हुए, बल्कि तुलसी के अनुयायी हो गये, उनके बारे में क्या लिखा/ कहा जायेगा ?
उच्च डिग्रीधारी लोग, जो
मानव संसाधन मंत्रालय को इसके पहले चलाये, वो
उच्च शिक्षण
संस्थानों को किस 'जन्नत'
(?) में पहुँचाये ? दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों में भारत का नाम कहीं नहीं है ?
इसके लिए देश का अनपढ़ ज़िम्मेवार है या
गँवार ? या फिर उच्च
डिग्रीधारी ? या फिर सम्पूर्ण व्यवस्था ?
उच्च शिक्षा को बनियों / व्यापारियों और बाज़ार के हवाले करने या फिर में गिरवी रखने का
फ़ैसला जनमत संग्रह से हुआ था ? जो
यह क़दम उठाये,उनकी डिग्री क्या थी ?
शिक्षा का बाज़ारीकरण करके, आर्थिक रूप से कमज़ोर जमात के बेटे-बेटियों को
उच्च शिक्षा से वंचित करने या रखने की साज़िश,जिन्होंने की उनकी शैक्षिक डिग्री / योग्यता क्या रही थी
?
उच्च शिक्षा में भाई-भतीजावाद / जातिवाद / क्षेत्रवाद
/ पैरवी और
घूसवाद का बीजारोपड़ कैसे हुआ ? इसकी नर्सरी कौन लगाया ? किस डिग्रीधारी के
कार्यकाल में इसका बीजारोपड़
हुआ ? किसके समय में कम और किसके समय में अधिक हुआ ? देशी शिक्षण संस्थानों को बर्बाद कर,विदेशी शिक्षण संस्थानों के लिए द्वार खोलने वालों की
योग्यता क्या रही थी ? जिसकी
जैसी आर्थिक हैसियत,उसको वैसी शिक्षा की
संस्कृति के विकास में किस डिग्रीधारी का हाथ रहा ?
पूर्ववर्ती सरकारों ने उच्च शिक्षा की बेहतरी के लिए जो कमीशन बने, उसमें शामिल लोग कौन थे ? सभी के लिए सर्वसुलभ शिक्षा के लिए
उन्होंने क्या सुझाव दिये ? उन
सुझावों को अमल में लाने वाले या रद्दी की टोकरी में डालने वालों की शैक्षिक
योग्यता क्या रही थी ?
लोक सभा में कुल 543 के
क़रीब सीट है, उसके अनुपात में मुल्क
की पूरी आबादी सवा करोड़ है । इसमें से 50 फ़ीसदी युवा हैं,जिसे
शिक्षा भी चाहिए और रोज़गार भी चाहिए, । हमारी शिक्षा कैसी हो,इसको लेकर कौन लोग मौन रहे ? इसके लिए लड़ने वाले कौन लोग रहे ? मोटी तनख़्वाह उठाने और हर जगह ख़ुद बने रहने की गणित
/ षड्यंत्र में लिप्त लोगों की शैक्षिक योग्यता / डिग्री क्या होगी ?
सिर्फ़ बकइती से काम नहीं चलता है । ज़मीनी हक़ीक़त का
मूल्याँकन करना चाहिए । इतना जल्दी देश की शिक्षा व्यवस्था में कोई
क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं होने जा रहा है और न ही इसे कोई 12
वीं पास करने जा रहा है । यह ज़िम्मेवारी
सिर्फ़ सरकार के खाते में शामिल नहीं है,जो लोग इस पेशे से जुड़े हैं,उनकी भी समान ज़िम्मेवारी है ? शिक्षा में व्यापक परिवर्तन के रास्ते को छोड़कर, पद, पैसा
और प्रतिष्ठा के आगे रेंगने वाले कौन लोग रहे हैं ? उनकी योग्यता / डिग्री क्या रही है ? इस सरकार में भी विभिन्न पदों पर आसीन होने
के लिए सिर झुकाये पंक्ति में खड़े लोग कौन हैं ? उनकी शैक्षिक योग्यता क्या है ? कहाँ से डिग्री /डिप्लोमा लिए हैं ? इन चेहरों को पहचानिए ? शायद हमारे आसपास
के ही हों ।
और
हाँ !
उनके घुटने को जरूर देखिएगा, वहाँ के दाग पक्के होते हैं !
आप बदलिए सब कुछ बदल जायेगा ।
डॉ. रमेश यादव
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, जर्नलिज्म
इग्नू, नई दिल्ली.
कहाँ-कहाँ मनाइएगा डिग्री और योग्यता का मातम ! (भाग-2)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 29, 2014
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