नहर पर बच्चों के साथ रह रही, पर वहां भी दर्द नहीं हो रहा कम

|मुरारी कुमार सिंह|24 जनवरी 2014|
एक तरफ जहाँ दुनियां के 85 लोगों के पास पूरी दुनियां की आधी सम्पति होने की बात हो रही है वहीं समाज का एक तबका ऐसा भी है जिसके पास न तो रहने के लिए घर है और न खाने के लिए रोटी.
      सुलेखा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. मजदूरी करके किसी तरह दो जून की रोटी की जुगाड़ तो कर लेती है ताकि बच्चों का पेट भर सके, पर रहने के लिए इस महादलित महिला के पास घर नहीं है. जिले के कुमारखंड थाना के रहटा गांव की सुलेखा के लिए घर एक सपने जैसा है. कहीं ठौर-ठिकाना नहीं मिला तो नहर के किनारे जाकर रहने लगी. सर ढंकने के लिए छोटा सा छप्पर गिरा लिया, पर सुलेखा को पता नहीं था कि बदकिस्मती उसके अपनों ने ही उसकी जिंदगी में भरा है.
      सुलेखा बताती है कि चाचा सीताराम राम उस नहर की सरकारी जमीन को लिखवा लेने की बात कहकर सुलेखा को वहां से भगाने की जिद पर अड़ा हुआ है. कुछ अन्य लोगों के साथ सीताराम नहर पर आकर कभी तो सुलेखा की झोंपड़ी उजाड़ने लगता है तो कभी उसके साथ मारपीट करने लगता है. अब सुलेखा जाए तो कहाँ जाए. चाचा उसे जान से मारने की धमकी दे रहा है.
      अब सुलेखा को एक ही सहारा दिख रहा है. मधेपुरा के जिलाधिकारी के पास गुहार लगाने पहुंची सुलेखा कहती है कि हाकीम लोग चाहें तो उसकी समस्या दूर हो सकती है.
नहर पर बच्चों के साथ रह रही, पर वहां भी दर्द नहीं हो रहा कम नहर पर बच्चों के साथ रह रही, पर वहां भी दर्द नहीं हो रहा कम Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 24, 2014 Rating: 5

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