और एक सिर्फ तुम्हे जानती हूँ
इसीलिए तुमसे अधिक अधिक
इसीलिए तुमसे अधिक अधिक
और अधिक मांगती हूँ 
तुम इतना प्रेम दे दो कि
तुम इतना प्रेम दे दो कि
लुटा सकूं रोम रोम से 
हर पल हर सांस सभी खाली मन,
हर पल हर सांस सभी खाली मन,
बर्तन भर दूं उसी विश्वास से 
तड़प कर देना भी कोई देना है 
इतना दे दो कि अघाने से भी 
भिखारी का पेट भर जाये 
पड़ोसियों की जलन मिट जाये 
बीमार को भी आराम आजाये 
अगर इतना प्रेम देने से हिचकिचाए मन 
तो भी ये मुंह से न कहना 
न न ना कहना 
झूठ मूंठ ही सही
झूठ मूंठ ही सही
आज तो लबालब भर देना 
पाने वाला झूठ सच से परे होता है
पाने वाला झूठ सच से परे होता है
इसलिए तुमसे अधिक अधिक 
और अधिक मांगती हूँ .....
**डॉ सुधा उपाध्याय, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर,
दिल्ली विश्वविद्यालय.
तुमसे और अधिक मांगती हूँ..///डॉ सुधा उपाध्याय
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