राजनीति///आनंद मोहन (पूर्व सांसद)

मनुष्य,
जब से अस्तित्व में आया,
अराजक दौर से निकला
पहले परिवार बसाया,
फिर समाज
और फिर राज बनाया,
तब से चली आ रही है - राजनीति.
राजनीति,
मतलब - राज, धर्म और समाज
संचालित करने वाली नीति.
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हजारों वर्षों के अपने लंबे सफर में
जब यह राम के पास पहुंची
तो बनी- राजधर्म
जब कृष्ण के पास पहुंची
तो बन गई निष्काम कर्म.
गांधी के पास पहुंची
तो बनी सेवा धर्म.
और कालांतर में,
जब यह आज के कथित नेताओं के पास पहुंची
तो बन गई बेशर्म.
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कल यह हमें सिखलाती थी,
धर्म, कर्म, न्याय, सत्य और नीति.
अब यह हमें पढ़ाती है,
छल-छद्म, तिकडम, फरेब, बेईमानी और कूटनीति.
पहले यह अन्याय, अधर्म, अनीति और अनाचार
पर थी दहाड़ती.
अब यह न्याय, धर्म, सुनीति और सच्चाई
को ही है मारती.
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डा० लोहिया ने कभी कहा था
राजनीति दीर्घकालीन धर्म है.
आज मैं कहने को मजबूर हूँ
शुरू से अंत तक,
यह अनीति और अधर्म है.
आज की राजनीति
गलाकाट और संकीर्ण हो गई है.
बेहयाई में यह
प्रथम श्रेणी, उत्तीर्ण हो गई है.
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पहले त्याग, बलिदान और पुरुषार्थ
की पर्याय थी राजनीति.
अब गबन, घोटालों और भ्रष्टाचार
का यथार्थ है राजनीति.

पहले यह लिंकन, लेनिन, जे.पी.,
लोहिया के साथ रहती थी
अब कोड़ा, राजा, कनिमोंझी और
कलमाड़ी के पास बसती है.
तब राजनीति हर परिवर्तन
और क्रान्ति की ललना थी,
अब यह यथास्थितिवाद की पोषक
और छलना है.

पहले हर जुल्मोसितम के खिलाफ
यह करती थी –‘क्रान्ति
अब जलते सवालों पर
लोगों में फैलाती है भ्रान्ति.
क्योंकि अब यह सुविधाओं के लिए सत्ता से
मजबूत रिश्ते जोड़ ली है
और संकटों से घबड़ाकर
संघर्षों से बेतरह मुंह मोड़ ली है.
इसलिए,
आज की राजनीति हृदयहीन हो गयी है,
और उसकी संभावनाएं क्षीण हो गई है.
राजनीति, तू भरी जवानी बाँझ हो गयी है,
और चढी दोपहरी, घटाटोप सांझ हो गई है.

रचना और संघर्ष,
कभी राजनीति के दो बाजू थे,
सृजन-संग-संग्राम,
जहाँ पर प्रश्न विकत मौजूं थे.
इन दो पक्षों के बिना राजनीति
ठूंठ हो गई.
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राजनीति जनता की दौलत, अस्मत लूट रही है,
देखो राज के हाथों नीति की साँसें टूट रही है.
था, राजा-रानी, राजतंत्र तो राजनीति थी,
है, लोकशाही और लोकतंत्र तो लोकनीति हो.

राजनीति वह जहाँ नीतियां
राज नियंत्रित करती.
लोकनीति वह, जहाँ नीतियां
लोगों द्वारा, लोगों के हित बनती.
फूट डालो और राज करो
यह राजनीति कहती है.
समता, सदभाव और सह-अस्तित्व,
पर लोकनीति चलती है.

घुप्प सांझ में
बाँझ राजनीति को गम जाने दो.
लोकतंत्र में 
लोकनीति फूलने-फलने दो.

**आनंद मोहन (पूर्व सांसद)
  मंडल कारा, सहरसा.
राजनीति///आनंद मोहन (पूर्व सांसद) राजनीति///आनंद मोहन (पूर्व सांसद) Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 04, 2012 Rating: 5

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