प्रगति का आधार: ‘भ्रष्टाचार’ (भाग-२)

कल तक फुटपाथ पर चिथड़े पहनकर नंगे पैर भटकने वाले कुछ भाग्यशाली लोग नेताओं का हाथ बंटा कर आज निहाल हो गए.दो-चार ठेकेदारी मिली नहीं कि भाग्य ने उन्हें आसमान की मचान पर पहुंचा दिया.वे द्रुत गति से फल-फूल रहे हैं.क्या यह उनकी उन्नति नहीं तो अवनति है?
  रंक से रंगदार बने लखपतियों को दरकिनार कर कोई भला आदमी समझदार की श्रेणी में शुमार कैसे हो सकता है?भला ऐसे लोग युग-पुरुष, महापुरुष नहीं तो आदर्श पुरुष जरूर कहलाते हैं.उनकी उन्नति और स्तरीय रहन-सहन का मिसाल देकर समाज में लोग अपने शालीन-सुशील कपूतों को पानी पी-पीकर रात-दिन कोसते हैं.
    कभी युद्ध में शहीदों की कफ़न-काठी में कमीशन खाने वालों को लोगों ने जीभर कर गरियाया जब अखबारों ने शोर मचाया.लेकिन बेधड़क ने तथाकथित कलाकारों के पक्ष में कशीदा काढने में कोई कोताही नहीं बरती-
   राष्ट्रहित जो शहीद हुए, सच्चे वीर सपूत
    सदा कमीशन देकर पाया, वर्दी कफ़न-ताबूत.
   बेधड़क तुझे नमन करता है, हे! कमीशनखोर,
   बलिहारी तेरे लालच की, जिसका ओर-न-छोर.
और, सर्वभक्षी नर-पशु भी श्रद्धा के पात्र ठहरे. ऐसे योग्य जानवरों का बेधड़क ह्रदय से मुरीद है-
    हम रोटी के लिए भटकते हैं,वे घास-पात भी चबाते हैं,
     सच्चा कलाकार वही है,जो अलकतरा तक पी जाते हैं.
आज थ्री-जी स्पेक्ट्रम बेचारे प्रगतिशील राष्ट्रचिंतकों के लिए जी का जंजाल बन गया है.विज्ञान को तीव्रता प्रदान करने वालों को कारागार भेजकर सरकार कौन सा उपकार कर रही है.
   जनकल्याण में मुहैया राहत-राशि को स्वकल्याण में ठिकाने लगानेवाले कर्मचारियों और अधिकारियों के विरूद्ध लोग इतना हाय-तौबा मचाते क्यों हैं?खानगी शिकायत के लिए तो कूड़ादान ऑफिस के कोने में तैनात रहता ही है.
  वैसे कार्यालयी दस्तूर के मुताबिक़ कुछ ले-देकर यदि लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है तो कम-से-कम मुझे तो इसमें कोई हर्ज दिखाई नहीं देता.पीटिशन पर वजन रखना लाजिमी है अन्यथा स्वार्थ की आंधी उसे उड़ा देगी.आखिरकार बेजान कागज का वजन ही क्या है?
   सच पूछा जाय तो उन बेचारों की बहाली भी तो कोई खैराती कोटे से नहीं होती.पूंजी के हिसाब से लोभ-लाभ न हो तो बुद्धिमान व्यापारी भी सबकुछ छोड़कर कुलीगिरी पर उतर आयेंगे.
   देश-विदेश के महंगे स्कूल-कॉलेजों में बुक अपने बच्चों के भविष्य की चिंता उन्हें नहीं है क्या?जीवन का क्या ठिकाना है?आखिर उनकी मुराद कब पूरी होगी? कार-कोठी के साथ भारी-भरकम बैंक-बैलेंस भी तो चाहिए उन्हें.
    कार्यालय की अनंत कथा का अंत करने का हूनर जो जानता है,वही फायदे उठाकर प्रगति के पथ पर सदा अग्रसर रहता है.

 --पी० बिहारी बेधड़क,मधेपुरा 
(संपर्क:9006772952)
प्रगति का आधार: ‘भ्रष्टाचार’ (भाग-२) प्रगति का आधार: ‘भ्रष्टाचार’ (भाग-२) Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on December 12, 2011 Rating: 5

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