शाम का चेहरा

ए शाम......
तू बड़ा उदास सा लगता है
कि कोई गम का
अहसास सा लगता है.
मैं पीने वालों में नहीं
कि भुला दूं तुझको कोहरे में
अंदाज अभी जवां है
कि अहसास अभी हरा है
शाम-ए-तन्हाई एक जुबां है
जो एक कसक बन निकलती है
सूनी आँखों में सपने
आंसू बन ठहरती है
पहर शाम की
उम्र सी लंबी क्यूं होती है?
..........
कोई बताए तो जरा
ये गजल बन क्यूं ढलती है
धुंधलेपन का आगाज क्षितिज पर
कुछ आकुल कुछ व्याकुल सा
ठहरा है तान भी एक सरगम का
एक ठहराव ये अंतस का है
सुबह से निकले खग-वृन्द
लौट चले हैं अब घर ओ अपने
धुएं मेघ से...
मेरे कोरे सपने..
..........
नई सुबह तो एक उम्मीद
शाम अंजाम है
अहसासों के समंदर लहरों-सी
जब तट से टकराती है
हिलते जीवन के तार
कोहराम मचाती है
ये शाम है या सैलाब विचारों के
कि खोये हुए हैं हम,
अन्तर्मन में......
चित्त चंचल चलो कि अब
ओस भी आह सा पिघलता है
ये शाम का स्याह चेहरा है
ए शाम....
तू बड़ा उदास लगता है
कि कोई गम का एहसास-सा लगता है.


--नीरज कुमार (पूर्व ई-टीवी संवाददाता, मधेपुरा)



शाम का चेहरा शाम का चेहरा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on September 01, 2011 Rating: 5

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