डा० रामलखन सिंह यादव: जज ही नहीं,उम्दा साहित्यकार भी

राकेश सिंह/०७ अगस्त २०११
मधेपुरा व्यवहार न्यायालय में प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर पदस्थापित डा० रामलखन सिंह यादव पेशे से तो एक जज हैं, पर शौक से एक उम्दा साहित्यकार. ०२ मार्च १९५६ को पड़री बाजार, भटनी, देवरिया में जन्मे रामलखन यादव मनोविज्ञान से एम.ए. हैं. साथ ही इन्होने पी.एच.डी., एल.एल.बी., पी.जी.डी.एच.आर. की भी डिग्री प्राप्त की है. पिता स्व० रामबिलास यादव और माता स्व० लाची देवी के पुत्र रामलखन यादव की शादी डा० कुसुम लखन से २१ मई १९८५ को बछउर देवरिया में हुई. डा० रामलखन सिंह यादव को मिले सम्मान और उपलब्धियों की अगर चर्चा करें तो इनकी संख्यां इतनी अधिक है कि इसे लिखने में कई पन्ने लग जायेंगे.हिन्दी के होमर के नाम से चर्चित डा० राम लखन सिंह यादव की प्रमुख कृतियाँ हैं लाजवंती के फूल(काव्य संग्रह), बहुचर्चित कटघरे में श्रीराम (काव्य संग्रह), टू स्वामी रामदेव (काव्य संग्रह,अंग्रेजी में), उठो सिद्धार्थ (काव्य संग्रह). डा० रामलखन यादव द्वारा रचित कहानी संग्रहों में बिका हुआ फैसला, आ रही सुनामी तथा 'पूरी धरती, अधूरे लोग' प्रमुख हैं.इन्हें मिले प्रमुख सम्मानों में राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान, २००८, काव्य भूषण, २००८, हिन्दी का होमर, २००८ आदि हैं और इनकी रचनाएं लगभग दर्जनों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकी हैं.
    एक वक्ता के रूप में अगर बात करें तो सधे हुए भाषण देते समय डा० रामलखन यादव बिल्कुल हलके मूड में नजर आते हैं.इनके भाषण के समय एक स्तब्धता कायम हो जाती है.विषय कोई हो,लगभग हरेक विषय पर इनकी पकड़ सहज ही नजर आती है.एक जज के रूप में भी डा० यादव के लगभग सभी फैसले की तारीफ़ तो की ही जाती है,पर न्यायपालिका के व्यस्ततम शिड्यूल में से समय निकाल कर साहित्य में इतनी बड़ी सफलता प्राप्त करना कोई आसान काम नहीं.
डा० रामलखन सिंह यादव: जज ही नहीं,उम्दा साहित्यकार भी डा० रामलखन सिंह यादव: जज ही नहीं,उम्दा साहित्यकार भी Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 07, 2011 Rating: 5

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