कोसीनामा-2

कोसी शब्द से जुडी सिर्फ नदी ही नहीं है, जिसे 'बिहार का शोक' कहा जाता है बल्कि यह नाम भगवान कृष्ण से भी जुड़ा हुआ है।


जब आप दिल्ली से मथुरा जाएंगे तो पलवल के बाद 'कोसीकलां' नामक जगह आता है। यह पूरा इलाका भगवान कृष्ण को ही अपना अराध्य मानता है। यहां के कण-कण में भगवान ही बसते हैं। यहां के लोगों के पालनहार भगवान कृष्ण ही हैं। यही स्थान बिहार के मिथिला क्षेत्र में कोसी नदी को मिला है। इसे मिथिला क्षेत्र की संस्कृति का पालना भी कहा गया है। विकीपीडिया के मुताबिक, कोसी नदी के तट पर मिथिला की संस्कृति जीवित है। 'माछ', 'पान' और 'मखान' इसी के सहारे पूरी दुनिया में 'प्रतिष्ठा' पाती है।

कोसी को कोशी भी कहा जाता है और पूरे क्षेत्र को कोशी का नाम से जाना भी जाता है। कोशी प्रमंडल नाम से प्रमंडल भी है। हालांकि यदि 'कोसना' शब्द पर विचार करें तो शायद इसी 'कोसना' शब्द से 'कोसी' शब्द का निर्माण हुआ हो। क्योंकि हर साल जिस तरह यह अपना तांडव पूरे इलाके में फैलाती है कि लोगों को अपने भाग्य को कोसने के अलावा कोई विकल्प सदियों से शायद ही दीखता हो। कोसी नाम का प्रयोग कई हिन्दू धर्मग्रंथों में भी व्यापक तौर से हुआ है। ऋगनाम हिन्दू ग्रंथों में इसे
कौशिकी नाम से उद्धृत किया गया है। कहा जाता है कि विश्वामित्र ने इसी नदी के किनारे ऋषि का दर्जा पाया था। सात धाराओं से मिलकर सप्तकोशी नदी बनती है जिसे स्थानीय रूप से कोसी कहा जाता है। इस नदी को नेपाल में कोशी के नाम से पुकारा जाता है. महाभारत में भी इसका जिक्र है।

काठमाण्डू से जब आप एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए जाएंगे तो आपको चार नदियां मिलेंगी। ये चारों नदी कोसी की सहायक नदियां हैं। तिब्बत की सीमा से लगा 'नामचे बाजार" जरूर देख आएं। यह कोसी के पहाड़ी रास्ते का सबसे प्रमुख पर्यटन स्थल है। मनमोहक दृश्यों को आप शायद ही अपने कैमरे में लेना भूलेंगे। फिर बिहार में बहने वाली नदी चाहे बागमती हो या बूढ़ी गंडक, इसी कोसी की सहायक नदियां ही तो हैं। नेपाल में यह कंचनजंघा के पश्चिम से होकर बहती है। नेपाल के हरकपुर में इससे दो सहायक नदियां 'दूधकोसी' तथा 'सनकोसी' मिलकर एक हो जाती है। और तो और 'सनकोसी, 'अरुण और 'तमर नदियों के साथ यह त्रिवेणी में मिलती हैं। इसके बाद इसे सप्तकोशी कहा जाता है और फिर यह बराहक्षेत्र में तराई क्षेत्र में प्रवेश करती है। इसके बाद यह असली रूप में यानी कोसी के तौर पर सामने आती है। इसकी सहायक नदियां एवरेस्ट के चारों ओर से आकर मिलती हैं और यह विश्व के ऊँचाई पर स्थित ग्लेशियरों (हिमनदों) के जल लेती हैं। भीमनगर के निकट यह भारतीय सीमा में दाखिल होती है। 

बरसात के मौसम में हर साल कोसी तांडव मचाती है। कभी अपने एक किनारे की ओर तो कभी दूसरे किनारे की ओर। पूरे इलाके में कोसी कितने नामों से जानी जाती है, वह इलाकाई लोग ही बता सकेंगे। कोसी का ही प्रकोप है कि वीरपुर से बिहपुर तक की 'हाइवे अभी तक नहीं बन पाई है। घोषणा कितने बर्ष पहले हुई, यह सरकारी फाइलें ही बता सकती हैं। इस हाइवे की आस लगाए कई पुस्त जिंदगी खत्म भी हो चुकी है। चौसा के पास पुल बरसों से अधूरा पड़ा है। लेकिन जिन्हें पार करना होता है वह करते हीं हैं, नाव से। वीरपुर से बिहपुर तक की सड़क वन लेन ही है। एक तरह से बस आती है तो दूसरी तरह से आने वाली बस को 'पक्की से नीचे 'कच्ची पर उतरना पड़ता है। ना उतारो तो 'मां, 'बहन की इज्जत की 'वाट लगनी तय है।
  
--विनीत उत्पल,नई दिल्ली
कोसीनामा-2 कोसीनामा-2 Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 07, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. Thanx sir
    bahut achchha and gyanwardhak baat aapne batlaya

    ReplyDelete

Powered by Blogger.