जीतू की जान बच गयी होती अगर....

हत्या के बाद तमाशा देखती  भीड़
राकेश सिंह/१४ मार्च २०११
१२ मार्च २०११ को हत्यारों ने दिनदहाड़े जीतू की जान चाकू से मार कर ले ली.ये घटना सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा है.जीतू की माँ के अनुसार टीटू व उसके साथियों ने ही जीतू की हत्या की है.घटनास्थल के आस-पास के लोग भी दबी जुबान से इस बात का समर्थन करते हैं.बताया जाता है कि हत्यारे काफी देर से जीतू से उलझ रहे थे.लोगों ने कई बार हत्यारे को जीतू से अलग कर दिया पर फिर भी वे नहीं माने और अंत में लोगों ने आजिज होकर उन्हें छोड़ दिया.उसके बाद जो कुछ हुआ उसकी कल्पना शायद किसी ने भी नही की थी.हत्यारे ने जीतू पर चाकू से वार कर दिया और जीतू जमीन पर गिर कर छटपटाने लगा.
     इसके बाद जो कुछ हुआ वो घटना को और भी शर्मनाक बना गया.जीतू घायल होकर जमीन पर गिरा था और भीड़ तमाशबीन खड़ी थी. करीब एक घंटे तक जीतू जमीन पर गिर कर छटपटाता रहा और तब तक मदद का कोई हाथ उस तक नही पहुंचा.एकाध ने हल्ला भी किया तो किसी ने रिक्शा या कोई सवाडी लाकर नही दिया.और जब तक जीतू को अस्पताल पहुँचाया गया तब तक जीतू दम तोड़ चुका था.
   भीड़ की ये प्रकृति समझ से बाहर थी.हमने जब वहाँ आसपास के लोगों से इसका कारण जानना चाहा तो भीड़ की मनोवृत्ति समझ में आने लगी.आसपास के दुकानदारों ने बताया कि अब कोई लफड़ा में पड़ना नही चाहता है.इसमें पड़ने पर आपको जल्दी छुट्टी नही मिलती है.सबसे पहले तो पुलिस का लफड़ा बहुत खराब होता है.पुलिस कभी भी आपको थाने पर बुला कर पूछताछ के लिए घंटों बैठा कर रखेगी.इनके पूछताछ का तरीका भी ऐसा होगा मानो वो आपको ही अपराधी समझ रही है.इससे भी खतरनाक बात होती है पुलिस को अपराधी का नाम बताना.अगर आप नाम बता देते हैं तो आप सीधी तौर पर उस अपराधी से दुश्मनी मोल ले लेते हैं जिसने अभी-अभी हत्या जैसे वारदात को अंजाम दिया है.लोगों को कोर्ट के लफड़े से भी डर लगता है,गवाह बने तो आप पर वारंट भी जारी हो सकता है.गवाह पर के वारंट में भी पहले तो पुलिस पैसे वसूल करती है फिर कमर में रस्सा लगाकर कचहरी ले जाती है.वहाँ भी बिना दान-दक्षिणा के आपका छूटना संभव नही होता.यानि वारदात के समय का थोड़ा सा जोश आपको परेशानी के अलावा शायद ही कुछ देने वाला है.
    हम अवाक् रह गए.दरअसल समाज की इस मनोवृत्ति के पीछे असुरक्षा की भावना है.समाज की सुरक्षा का भार हमारी पुलिस तंत्र पर है और पुलिस तंत्र इतना खोखला हो चुका है कि लोगों का विश्वास उसपर से करीब पूरा ही उठ गया है.उन्हें लगता है कि पैसे के लिए पुलिस अपराधियों तक को तरजीह दे सकती है और ऐसे में आम जनता निरीह प्राणी बन कर रह सकती है.न्यायतंत्र पर भी लोगों का भरोसा अब तक पूरी तरह नही जमा है.
  पर जो भी हो,समाज को अपनी मनोदशा बदलनी ही होगी, वर्ना अपराधियों के हौसले बुलंद होते चले जायेंगे. आज जीतू की हत्या सरेआम हुई है और यदि हम और आप चुप रहे तो हमारे-आपके भी किसी प्रियजन के साथ ऐसा ही हादसा हो सकता है और ऐसी भीड़ उस समय भी घटना को सिनेमा समझकर देखती रहेगी.
जीतू की जान बच गयी होती अगर.... जीतू की जान बच गयी होती अगर.... Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 14, 2011 Rating: 5

2 comments:

  1. bihar ek aisa rajya hai,jahan is tarah ki ghatnayen aam ho gyi hai,aur iske liye koi kadam v sarkar ki taraf se uthaya nhi ja rha hai.

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  2. DEAR MR,RAKESH KUMAR SINGH JEE
    YOU ARE 100% RIGHT YOUR NEWS 100% TRUTH
    I AGREE
    POLICE BOLE TO MONEY DANN KARO
    KUCH NAHI HO SAKTA BIHAR KA SAB KE SAB MILE HUA HAI SIR
    SAB POLICE KARTI HAI PUBLIC DEKTI HAI OR DARTI HAI KUCH NAHI HAI SAB TIME PASS HAI SIR

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