फिर भी जमीं पर सजदे किये जा रहा हूँ:जिन्दा में ही खुद की बनाई समाधि

इश्क के मैंने कितने फ़साने  सुने
हुस्न  के कितने किस्से पुराने सुने
ऐसा लगता है फिर इस तरह टूट कर 
प्यार हमने किया एक जमाने के बाद.
            प्यार के एक-से-एक किस्से आपने सुने होंगे. पर ये पति-पत्नी की प्रेम कहानी उन सबसे बढ़कर है. आम तौर पर पत्नी की मौत हो जाने पर पति या तो दूसरी शादी कर लेता है या फिर संतोष कर लेता है.पर मधेपुरा के एक अवकाशप्राप्त शिक्षक ने पत्नी प्रेम की वो मिसाल कायम की है जिसे सुनकर पहले तो लोगों ने रामेश्वर यादव को पागल कहा फिर उनकी गहरी मुहब्बत को मान लिया और आज वेलेंटाइन डे को मधेपुरा के लोग फिर से रामेश्वर यादव को मुहब्बत का प्रतीक मानकर याद कर रहे हैं.

      पत्नी से बेइंतहां मुहब्बत करने वाले मधेपुरा के सिंघेश्वर प्रखंड के भैरवपुर गाँव के शिक्षक रामेश्वर यादव ने कभी नही सोचा था कि उनकी आँखों के सामने एक दिन उनकी दुनियां उजड जायेगी.पत्नी लक्ष्मी देवी के साथ रामेश्वर की जिंदगी बहुत ही सुखद रही थी पर लक्ष्मी की बीमारी ने रामेश्वर का हौसला तोड़ दिया.बीमारी की अवस्था में भी रामेश्वर ने लक्ष्मी की खूब सेवा की और उन्हें बचाने की भी पुरजोर कोशिश.पर यहाँ भगवान भी निर्दय निकले.मरने से पहले लक्ष्मी ने रामेश्वर से पूछा था कि कैसे रह पायेंगे आप मेरे बिना.किंकर्तव्यविमूढ़ रामेश्वर के मुंह से कोई आवाज नही निकल सकी थी.रामेश्वर की आगोश में ही लक्ष्मी ने दम तोड़ दिया.पत्नी के बिना तो जीने की कल्पना भी नही किये थे रामेश्वर.

        गाँव में ही पत्नी का दाह-संस्कार किया इन्होने और लगे लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करने.पत्नी के मरते समय की बातें रह-रह कर इन्हें झकझोरने लगी थी.और फिर रामेश्वर ने जो फैसला लिया उसे देखकर गांववालों ने कहा कि इनकी मानसिक स्थिति बिगड़ गयी है.रामेश्वर ने पत्नी के साथ खुद की भी समाधि बनवा ली.दोनों बुत साथ-साथ हैं,जबकि रामेश्वर अभी जिन्दा हैं.रामेश्वर रोज ही अपनी और पत्नी की समाधि स्थल पर जाते हैं और पत्नी की प्रतिमा को कपडे से साफ़ कर सहलाते हैं जैसे वो पत्नी की सेवा कर रहे हों.इनका मानना है कि भगवान  ने उनकी पत्नी को  भले ही  बीच मझधार में उनसे छीन  लिया पर वे मरते दम तक अपनी अर्धांगिनी के साथ रहेंगे और मरने के बाद भी इस समाधि के रूप में. समाधि स्थल के पास अपनी पत्नी को याद करते कहते है,"मैं जानता हूँ कि तेरी जलवागाह अब आसमां में है,फिर भी जमीं पर सजदे किये जा रहा हूँ."
(Bureau Report)
फिर भी जमीं पर सजदे किये जा रहा हूँ:जिन्दा में ही खुद की बनाई समाधि फिर भी जमीं पर सजदे किये जा रहा हूँ:जिन्दा में ही खुद की बनाई समाधि Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 14, 2011 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.