कॉन्वेंट स्कूल: माल काटने का नया गोरखधंधा

मधेपुरा में अगर कॉन्वेंट स्कूलों की संख्यां गिनी जाय तो ये दो सौ से कम नही होगी.लेकिन अगर अच्छी पढाई की बात करें तो मुश्किल से पांच-छ:,तो बाक़ी क्या कर रहे हैं? आइये सबसे पहले हम आपकी मजबूरी बताते हैं.ईश्वर की अनुकम्पा से आपके बच्चे हैं,आप जानते हैं कि आपके बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य है.आप आर्थिक रूप से सक्षम हैं,अत: आप अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ा नही सकते.वैसे भी सरकारी स्कूल अब शिक्षा के लिए कम और खिचड़ी खाने के लिए ज्यादा जाना जाता है.दरअसल सरकार की प्लानिंग है कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे स्कूल
आवें,पढ़े या न पढ़े,नही तो स्तरहीन शिक्षकों की बहाली सरकार नही कर लेती.जो भी हो,आप अपने बच्चे को भेजते हैं कॉन्वेंट ही.और बस आपकी जरूरत कहें या कमजोरी, इसी का फायदा उठाने के लिए मधेपुरा जैसे शहर में कुकुरमुत्ते की तरह खुल गए गली-गली में कॉन्वेंट.कुछेक को छोड़ कर ज्यादातर ये वैसे बेरोजगारों के द्वारा खोले जाते हैं जो नौकरी पाने की दौर में फिसड्डी साबित होते हैं.यानी मेरिट का कुछ-न-कुछ अभाव.इन स्कूलों में टीचर की एक फौज खड़ी कर ली जाती है जिसके प्रकार हो सकते हैं,सर, मैडम और मिस.इनमे से सर पुरुष, मैडम विवाहिता और मिस अविवाहिता होती हैं.इनमे से भी ज्यादा वैसे ही बेरोजगार हैं जिन्हें नीतीश
सरकार में नियोजन पर चार हजार की भी नौकरी नही मिली है.यहाँ ये सूट-टाई लगाकर आपको पश्चिमी सभ्यता की झलक दिखलाएंगे.आप जब बच्चे का एडमिशन करने जाते हैं तो एडमिशन फी के नाम पर आपसे कड़ी राशि वसूल की जायेगी.फिर मंथली स्कूल फी और कोन्वेनिएंस चार्ज.सबके बच्चे रिक्शा और ऑटो में बैठकर जाते हैं तो आपके भी तो जायेंगे.स्कूल में ये तथाकथित मेरीटोरिअस टीचर आपके बच्चे को फुर्ती से जो चार चीज सिखा देंगे वो हैं.१.में आई कम इन ? २.में आई गो आउट ? ३.थैंक यू ४.सौरी. कुछ दिनों के बाद आपके बच्चे घर में बैठकर रटने लगते हैं, टू टू जा फोर, टू थ्री जा सिक्स….और आप सपनों में खो जाते हैं…….मेरा बेटा इंजीनियर से कम नही बनेगा.पर ये टीचर की खाल ओढ़े बेरोजगार इससे ज्यादा खुद नही जानते होते हैं तो बच्चों को क्या ख़ाक सिखाएंगे.गलत-सलत पढ़ाते ये आगे बढते हैं,पर इनका कॉन्फिडेंस देखने लायक होता है.आप खुद अगर पढ़े लिखे हैं और बच्चे पर ध्यान देते हैं तब तो ठीक है वर्ना इन स्कूलों में एकाध जो अच्छे टीचर हैं(जो बदकिस्मती से बेरोजगार हैं) उन्ही की बदौलत आपके बच्चे कुछ सीख पाते है. इन स्कूलों का एकमात्र उद्येश्य होता है,पैसा कमाना.डेवलपमेंट फी,एग्जाम फी,सरस्वती पूजा फी,गणतंत्र दिवस फी……..किताब में इनकी कमीशन,स्कूल ड्रेस में कपड़े की दुकान से और दर्जी में कमीशन.यानी ये शिक्षा कम देते हैं,कमीशनखोर ज्यादा होते हैं.आप की जेब से पैसे निकलवाने में माहिर होते हैं ये.कल्चरल डेवलपमेंट के नाम पर ये ढेर सारे प्रोग्राम भी करवाते हैं.एक और गुण जो इनमे बखूबी पाया जाता है….दूसरे स्कूल की चुगली करना.एक नंबर के चुगलखोर होते हैं ये.डायरेक्टर साहब ज्यादा से ज्यादा वसूल किये गए माल को खुद पचाना चाहते हैं और टीचर को ‘क्या पढाता है तुम,हम नही जानते हैं?’ कह कर कम भुगतान करते है.चूंकि टीचर ने भी डायरेक्टर साहब की कमाई देख रखी है,अत: कुछ दिन बाद वे भी कुछ विद्यार्थियों को फोड़कर नया स्कूल खोल लेते हैं.और ये भी एक वजह है मधेपुरा में कुकुरमुत्ते की तरह स्कूल खुलने का.कुछ स्कूल तो स्कूल टाइम के बाद भी स्कूल में ही प्राइवेट ट्यूशन की व्यवस्था कर अलग से पैसे लेते हैं.तो ये बात तो तय हुई न कि स्कूल में इनकी पढाई कमजोर है. जो भी हो,हमें आवश्यकता है इन स्कूलों के नाजायज फीस का विरोध करने,स्कूल के बाद बच्चों पर खुद ध्यान देने की ताकि बच्चे को सही शिक्षा मिल सके और सरकार को चाहिए कि इनमें से घटिया स्तर के  स्कूलों को बंद करके सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर ऊपर उठावें.
कॉन्वेंट स्कूल: माल काटने का नया गोरखधंधा कॉन्वेंट स्कूल: माल काटने का नया गोरखधंधा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on December 29, 2010 Rating: 5

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